हमारी खबर का असर : चार अभियुक्तों के‌ विरुद्ध दर्ज हुई आत्म हत्या के लिए उकसाने की एफआईआर

शाबाशी उसे जिसके संज्ञान से ” देर आये दुरुस्त आये!”
…ताकि कोई पीड़ित इस तरह थानों में टालमटोल व एफआईआर और कार्यवाही के लिए न भटके, होगा कारगर आदेश या ढकोसलेबाजी?
पीड़िता की आंख में जगी मृतका को इंसाफ मिलने की उम्मीद!
हरिद्वार/देहरादून। हमारे द्वारा देर रात्रि विगत 4 फरवरी को रुड़की के थाना कोतवाली गंगनहर क्षेत्र अन्तर्गत एक नावालिग छात्रा मिशिका के उत्पीड़न और शोषण से तंग आकर की गयी संदिग्ध प्रेरित हत्या या आत्म हत्या प्रकरण में पुलिस द्वारा निरंतर छः महीने तक टाल मटोल और ढींगा मस्ती तथा पीड़ित रोती बिलखती मां की फरियाद न सुनने और एफआईआर न दर्ज करके अपराधियों से सांठ-गांठ सम्बंध में खुलासा करते हुए समाचार प्रकाशित किया था। उक्त समाचार के प्रकाशन‌ का हमारा उद्देश्य‌ केवल पीड़ितों की मदद कर उन्हें कानूनी संरक्षण प्रदान कराना और न्याय दिलाना ताकि अपराधियों को उनके किये गये गुनाह की सजा मिल सके मात्र होता है।
दर्ज एफआईआर देखिए…
ज्ञात हो‌ कि महिला अत्याचार व उत्पीड़न के विरुद्ध आवाज उठाते हुए पीड़िता की आवाज को सरकार व पुलिस के आला अफसरों तक पहुंचाने का परिणाम यह हुआ कि थाना कोतवाली गंगनहर ने तथाकथित अभियुक्तों के विरुद्ध मुकदमा अपराध संख्या 0383 वर्ष 2023 अन्तर्गत धारा 306 भाई.द.स. का पार्थ गुप्ता व उसकी बहिन एवं निवेश राणा तथा देव गुप्ता के विरुद्ध आत्महत्या के लिए उकसाये जाने की दर्ज कर दी है तथा इस प्रकरण की विवेचना उसी महिला उपनिरीक्षक रेखा पाल को सौंप दी है जिसके द्वारा मिशिका के‌ शव का पोस्टमार्टम कराकर‌ पंचनामा भर कर प्रथम दृष्टया आत्म हत्या मान कर  “पुलिस कार्यवाही की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती” कर रफा-दफा करने का प्रयास किया था। यही नहीं इस प्रकरण में 4 फरवरी से अब तक निरंतर टाल मटोल‌ की जा रही थी और नियमानुसार एफआईआर तत्काल न दर्ज कर पीड़िता का हर स्तर पर इतना उत्पीड़न जारी था कि वह अपने आप ही कानून को कोसते हुए चुप होकर बैठ जाये?
उल्लेखनीय है कि खबर का असर हो या फिर आला अधिकारियों के संज्ञान में आने पर‌ प्रारम्भिक ऐक्शन की बानगी है कि पहले एफआईआर दर्ज हो और फिर तदनुसार अपराधियों व अपराध को छिपाये रखने और दयानतदारी से दायित्व न निभायें जाने के विरुद्ध अगला एक्शन ताकि फिर कभी धामी सरकार के शासनकाल में इस तरह कोई और पीड़ित न हो!
मजेदार तथ्य यह है कि जब कोई पीड़ित या ग्रसित व दुखियारा थाने चौकी अपनी एफआईआर दिखाने जाता है तो उसकी तत्काल एफआईआर दर्ज न करके बैठ जाओ साहब आयेंगे, पहले जांच होगी, कल आना, रिसीविंग न देना पुलिसिया रोल दिखाकर डांट डपट यह कह कर भगा देना कि ज्यादा बनता है आदि आदि तरह की रुकावटों के लिए खेल जैसी प्रैक्टिकल पुलिस का रवैयेके बारे में आला अफसर‌जानते भी हैं परन्तु कोई कारगर एक्शन नहीं लेते? आखिर क्यों… क्या जिम्मेदार व सक्षम अधिकारी जनहित में इस पर गम्भीरता से ध्यान देंगे या फिर हाथी के दांत दिखाने के कुछ और खाने के कुछ की कहावत को ही‌ चरितार्थ करते रहेंगे!
देखना यहां अब यह गौर तलब होगा क्या पुलिस इस प्रकरण की गहराई व गहनता से जांच करके सच्चाई की तह तक समयबद्ध सीमा में पर्दाफाश कर दोषियों को जल्दी सजा और पीड़िता को राहत पहुंचाने का कार्य करेगी या फिर…?

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