खबर का असर : तहसील, एमडीडीए व जल संस्थान की संयुक्त टीम ने अवैध बेल बोरिंग पर की सीलिंग की कार्यवाही

शासनादेश तो है परन्तु प्रभावहीन!

शासन की लापरवाही और उदासीनता के चलते फ्लेट्स वह अपार्टमेंट्स पर कोई वाटर बिल न होने से लग रहा है करोंड़ों का मासिक राजस्व को चूना 

देहरादून। घंटाघर के निकट चकराता रोड पर विगत छः दिनों से लगाते जा रहे गैरकानूनी बेल बोरिंग पर आज “देर से आये दुरुस्त आये” वाली कहावत भी पूरी तरह चरितार्थ तो नहीं हो पायी। हां some thing better then nothing के अनुसार आज दिन में तहसीलदार सदर, एमडीडीए एवं जल संस्थान की संयुक्त कार्यवाही में सीलिंग की कार्यवाही की गई। स्मरण हो कि इस अवैध बोरिंग व क्षेत्रवासियों की पीढ़ा को हमारे द्वारा प्रमुखता से प्रकाशित किया जा रहा था।

देखिए जिलाधिकारी का वह आदेश जो चार दिन तक ठंण्डे बस्ते में रहा ….

अवैध बोरिंग पर सीलिंग की कार्यवाही करती संयुक्त टीम 

ज्ञात हो कि जिलाधिकारी दून के दिनांक 16 सितम्बर को एसडीएम, सिटी मजिस्ट्रेट एवं सचिव एमडीडीए सहित एडीएम भी आदेश को रद्दी की टोकरी में डाले रखे हुए थे तथा खुद सक्षम होते हुते संदेशों से खेती करने वाले ये आराम तलब अपने अधीनस्थों के भरोसे छोड़ बैठे थे और तहसीलदार से लेकर अन्य सक्षम विभाग व अधिकारी ‘तू जा’ और ‘तू जा’ के चक्कर में कार्यवाही को फंसा कर रखे हुए थे। परंतु जब इरादे नेक हो तो मेहनत  रंग लाती ही है और इस मुहिम की निरंतरता बनाये रखने के चलते ही‌ गैरकानूनी वेल बोरिंग का काम छटे दिन रुक सका जिससे राजधानी दून के‌ शहर के बीचोबीच के क्षेत्रवासी त्रस्त थे।

मजे की बात तो यहां यह भी है कि अवैध बोरिंग पर मात्र सीलिंग की कार्यवाही करके ही संयुक्त टीम ने इतिश्री मान ली जबकि उक्त गैरकानूनी कृत्य पर केन्द्रीय ग्राउंड वाटर बोर्ड के डीएम को लिखे ऊपर दर्शाये गये पत्र के अनुसार अभियोग भी पंजीकृत कराया जाना चाहिए था साथ ही उक्त ट्रक को बोरिंग मशीन सहित सील भी किया जाना चाहिए था। ज्ञात हो कि संयुक्त टीम के उक्त सभी अधिकारी शासनादेश से अपने को अनिभिज्ञ बताते हुये खानापूर्ति करके चले गये।

शासनादेश भी हैं परंतु उदासीन व लापरवाह आला अफसरों के कारण प्रभावहीन व सुप्त?

नगर के मकानों पर का जल का चार्जेज और प्लेटों से वसूली कर खुद की जेब भरने बिल्डर्स व कोलोनाईजर्स पर वाटर बिल न जल दोहन का जुर्माना क्यों नहीं? जिम्मेदार कौन?

उल्लेखनीय है कि राजधानी दून सहित समूचे प्रदेश में कंक्रीट के जंगल बढते चले जा रहे हैं और इन हजारों लाखों अपार्टमेंट्स व बड़ी बड़ी सैंकड़ों कालोनियों एवं फ्लेट्स में बिना अनुमति के बेल बोरिंग लगाए जा चुके हैं। इन अवैध बेल बोरिंगों से जहां कानून की धज्जियां उड़ रहीं हैं और मुफ्त में जल का जबरदस्त दोहन भी हो रहा है वहीं इससे प्रदेश सरकार के पेयजल विभाग को करोंड़ों के मासिक राजस्व का चूना भी लग रहा है।

गौरतलब तथ्य यहां यह भी है कि एमडीडीए अथवा अन्य विकास प्राधिकरणों द्वारा इन अपार्टमेंट्स और फ्लेटों व कालोनियों के नक्शे स्वीकृत करते समय केवल अपने विकास शुल्क का तो ध्यान वखूवी रखा जाता है किन्तु इनमें लगने वाले अवैध व गैरकानूनी बेल बोरिंगों के कारण राजस्व की हो रही क्षति के सम्बन्ध में तनिक मात्र भी ध्यान नहीं दिया जाता रहा है और न ही पेय जल विभाग व जल संस्थान एन ओसी देते समय इस होने वाले नुक़सान व जल दोहन पर ध्यान देता है। जबकि फ्लेट्स वह आवासीय कालोनियों में बिल्डर्स व कोलोनाईजर्स के द्वारा वाटर चार्जेज के नाम पर खासी मासिक वसूली फ्लैट्स में रहने वालों से की जाती है।

क्या धामी सरकार व शासन‌ इस ओर गम्भीरता पूर्वक कोई ठोस नीति अमल में लायेगी या फिर यूं ही…!

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