धामी शासन में भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा : देश की सुरक्षा और संप्रभुता को भी दांव पर लगाए जाने की सम्भावना और साज़िश!

एडीबी एप्रूबल्स की आड़ में खेला जा रहा है ऊर्जा निगमों में खेला !
केन्द्रीय वित्त एवं ऊर्जा मंत्रालय के निर्देशों की अनदेखी कर किये जा रहे चार सौ करोड़ के टैण्डरों पर क्या बीओडी लगायेगी रोक?
चाईनीज कम्पनी को जेबी पार्टनर बनाने वाले बिडर का टेण्डर होगा निरस्त? 
पिटकुल के द्वारा कुमायूं मंडल में तीन और गढ़वाल में दो जीआईएस तथा एक एएसआई सब स्टेशन का होना है निर्माण
सिंगल बिडर चहेती कम्पनी को टेण्डर्स अवार्ड करने के लिए बुना जा रहा है ताना-बाना !
नियम कायदों को‌ बलाए ताक रख सचिव ऊर्जा के निर्देशन में धमका कर बनवाई जा रही बार-बार एसओआर कहां तक उचित?
…यूं तो यूपीसीएल में भी चल रहा आरडीएसएस और एडीबी के हजारों करोड़ के टेण्डरो में गजब का कारनामा!
पहले ब्रह्म वारी में ब्रेथवेट के चक्कर में खेला जा चुका है, एक खेल भी!

(पोलखोल-तहलका ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता की  एक्सक्लूसिव रिपोर्ट)
देहरादून। अधिक से अधिक परियोजनाओं और विकास की योजनाओं को धरातल पर उतारा जाना चाहिए ताकि हमारा देश और प्रदेश‌ प्रगति करे लेकिन हमें क्या ऐसी प्रगति जो आंख बंद कर महज निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए की जा रही हो उन कार्यों से देश की सुरक्षा भी खतरे में पड़ती हो‌ व हानिकारक बनने वाली योजनाएं उचित हैं? यहां जिस चन्द चांदी की चमक और गाढ़ी काली कमाई का उल्लेख किया जा रहा है वह ऐसा ही गम्भीर प्रकरण है जिसके अन्तर्गत देश विरोधी साजिश कब अपना रूप दिखा सकने वाली सम्भावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है। यही नहीं जब भ्रष्टाचार और घूसखोरी पर एक्शन लेने की बजाए उन्हें कमाई का जरिया भी बनाया जाने लगेगा तो फिर क्या ये भ्रष्टाचारी कफ़न और वतन दोनों ही बेच डालने में किंचित मात्र भी संकोच नहीं करेंगे। ऐसा ही देश की सुरक्षा और सम्प्रभुता से जुड़ा एक गम्भीर मामला सीमान्त प्रदेश उत्तराखंड का प्रकाश में आया है।
ज्ञात हो कि उत्तराखंड की सीमाएं हमारे लिए घातक और हानिकारक एवं अविश्वसनीय चीन‌ से लगी हुई हैं, ऐसी स्थिति में यदि एडीबी द्वारा वित्त पोषित योजनाओं और परियोजनाओं को साकार करने के लिए ऐसे बिडर को टेण्डर ऊर्जा विभाग का पिटकुल एवार्ड करेंगा जिसका जेबी पार्टनर कोई चाईनीज कम्पनी हो तो‌ क्या इससे देश की सुरक्षा में सेंध लगवाना और खिलवाड़ नहीं कहलायेगा ?
यही नहीं उच्चाधिकारियों के दबाव में मनमर्जी के रेट्स पर टेण्डर लेने के लिए जिस तरह का अजीबो-गरीब खेल खेला जा रहा है वह तरीका भी अपने आपमें गजब है। तभी तो जिसे धामी शासन के कर्णधार और मुख्य कर्णधार जिसे कान्ट्रैक्ट दिलाना चाहते हैं उसके लिए जिस तरह की शतरंजी चाल चलकर अपने को पाक-साफ बनाए रखने के लिए जो किला बनाते हैं उसमें छोटी व पत्ली गर्दनें फंस कर रह जाती हैं और फिर रिंगमास्टर के इशारों पर इंजीनियर और अधिकारी नाचते रहे जाते हैं। ठीक ऐसा ही खेल धामी शासन के ऊर्जा मंत्रालय के इशारों पर व्रह्मवारी का कान्ट्रैक्ट किसी चहेते ब्रेथवेट को उसकी मनचाही दरों पर दिलाने के लिए वहां कार्य कर रहे कान्ट्रैक्टर्स का कान्ट्रैक्ट निरस्त कराया जा चुका है। उक्त कान्ट्रैक्टर के पक्ष में एक पर्ची भी शासन से पिटकुल आ चुकी है बताया जा रहा है जबकि ब्रेथवेट किसी भी तरह से मानकों के अनुरूप नहीं है। “एक तीर से दो शिकार” और “अपना काम बनता, भाड़ में जाए देश और जनता” की कहावतों को चरितार्थ करते हुए भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों पर लिखी गयी वे पंक्तियां कि कफ़न भी बेंच देंगे और वतन भी बेंच देंगे सच नजर आ रही हैं।
देखिए एडीबी से चाईनीज जेबी पार्टनरशिप वाली फर्म के टेण्डर‌ की ली गयी एप्रूबल….
दूसरा मजेदार तथ्य यहां इस प्रकरण में यह है कि इस चहेती फ्लोमोर कम्पनी के मनचाहे रेट्स पर टेण्डर देने के लिए सारे नियम कानून बलाए ताक रखते हुए प्रक्योरमेंट पालिसी के विपरीत जाकर जो शिड्यूल आफ रेट (SOR) तैयार करने का दबाव ब्यूरोक्रेट्स के सुपरविजन में रहकर इंजीनियरों पर डाला जा रहा है यही नहीं उन्हें डिप्लोमेटिक रूप में धमकाये जाने की भी चर्चा जोरों पर है क्योंकि इसमें कहीं पर तीर और कहीं पर निशाना की कहावत को भी चरितार्थ किया जा रहा है। दर असल यहां जिस शिड्यूल आफ रेट के बारे में यह बताया जा रहा है कि 2018 से परिवर्तित नहीं हुई उसकी वास्तविकता यह है कि रेट तो लगभग लगभग-लगभग हर साल अप्रैल में चेंज हुए तभी तो 2022 तक कान्ट्रैक्टर्स द्वारा ई-टेण्डरिंग से कान्ट्रैक्ट साईन कर काम किया गया वरना क्या घाटे में कोई कान्ट्रैक्टर कार्य करता है?
किन्तु यहां  मजेदार बात यहां यह है कि जिस कान्ट्रैक्टर को एडीबी का कान्ट्रैक्ट अवार्ड कराना चाहा जा रहा था उस कम्पनी को एसओआर के रेट्स रास नहीं आ रहे थे। और फिर “जब साहब मेहरबान तो गधा भी पहलवान” परिणामस्वरूप नियमानुसार 2023 अप्रैल में शेड्यूल रेट रिवाईज हुए और उनकी विधिवत घोषणा भी पिटकुल द्वारा की जा चुकी थी। बताया जा रहा है कि तत्पश्चात एडीबी के निर्देशन पर इस सिंगल बिड टेण्डर का पार्ट-2 खोला जाना था क्योंकि पार्ट-1 खोले जाने के समय ही चहेती के फेर के खेल में पहले ही दो अन्य बिडर्स अयोग्य साबित किये जा चुके थे। परंतु यहां तो अभी भी रेट प्रतिकूल थे जिसको बढ़वाने के लिए फिर दिसम्बर माह के प्रथम सप्ताह में नियमों के विरुद्ध बीच में ही  एसओआर बनवाई गयी जो रेट भी पसंद नहीं आये परिणामस्वरूप दो सप्ताह बाद अर्थात दिसम्बर के चौथे सप्ताह में डिप्लोमेटिक फटकार के माध्यम से विकास और प्रगति की आड़ लेते हुए 50 से 60 प्रतिशत बढ़े हुए रेट्स पर एडीबी से एप्रूबल लेकर टेण्डर अवार्ड कराने की तैयारी कर ली गयी जिस पर 16 जनवरी को होने वाली पिटकुल बोर्ड की मीटिंग में पहले से खींची गयी लकीरों के अनुसार स्वीकृति प्रदान कर बारे न्यारे करने का घिनौना खेल खेल दिया जायेगा?
महत्वपूर्ण तथ्य यहां देखने योग्य होगा कि ऐन केन प्रकरेण मनचाहे रेट्स के खेल में विजयश्री प्राप्त कर चुके ये धाकड़ धामी के कर्णधार भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय के 2 जुलाई 2020 के उन आदेशों को कैसे नजर अंदाज करेंगे जिसमें कहा गया है कि “Power sector is a strategic and critical sector.
The vulnerabilities in the power supply system & network mainly arisesout of the possibilities of cyber attacks through malware…!” etc. etc. इसके अतिरिक्त 18 नवम्बर 2020 को पुनः पत्रांक संख्या 9/16/2016-Trans-Part(2) किए गये आदेशों का अनुपालन भी तो  पिटकुल को ही करना है!
देखिए केन्द्रीय ऊर्जा एवं वित मंत्रालय के आदेश….
वहीं भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ एक्सपेंडीचर पब्लिक प्रक्योरमेंट डिवीजन द्वारा जारी पत्रांक संख्या F.No. 6/18/2019-PPD Dated 23rd July, 2020 Order (Public Procurement No.1) के अन्तर्गत जारी व एनेक्सर -1 के प्रभावी DPIIT के पैरा B में दिये गये निर्देशों का अनुपालन अगर किया गया होता तो टेण्डर आमंत्रण के समय अथवा ई-टेण्डर के पार्ट-1 टेक्निकल बिड की जांच पड़ताल के समय उक्त फ्लोमोर कम्पनी को चाईनीज जेबी पार्टनर के समय ही निरस्त कर दिया गया होता देश की सुरक्षा और सम्प्रभुता को भविष्य में किसी प्रकार से खतरा न बन सकने वाली सम्भावनाओं को नहीं ठुकराया जाता? क्या शासन की यह कार्य-प्रणाली धामी सरकार की देश के प्रति प्रतिबद्धता पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाती? क्या मात्र चंद चांदी की चमक में ऐसे राष्ट्रीय मूल्यों को खतरे में डालना उचित है?
मान भी लो कि यह सच है कि एसओआर पिछले कई वर्षों से रिवाइज नहीं हुई हैं जो विकास कार्यों में वाधक हैं पर इसका अभिप्राय यह तो उचित नहीं है कि जब बारी बारी अपने  स्वार्थ की आई तब बौखलाहट वरना कुम्भकरणी नींद…!  परन्तु डीपीआर और एसओआर बनाने के भी तो कुछ कायदे कानून भी होंगे जिसका अनुपालन करना भी तो इन इंजीनियरों का ही दायित्व है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार एशियन डेवलपमेंट बैंक द्वारा वित्त पोषित परियोजनाओं का पिटकुल के द्वारा सेलाकुई 220/33KV (2x50MVA)GIS Sub Station  का लगभग 85 करोड़ की लागत से  L4402 Ind (UCRPSDP) के पैकेज -1 Lot-1 में होना है तथा  Lot-2 में 132 /33KV (2x40MVA के चार जीआईएस सब स्टेशनों का‌ निर्माण कुमायूं मण्डल के लोहाघाट, खटीमा और धौलाखेडा सहित देहरादून के आराघर में लगभग सवा तीन सौ करोड़ की लागत से होना है। इसके अतिरिक्त PACKAGE-2 में एक 220/132/33KV (2X160MVA+2X40MVA) AIS  सब स्टेशन का निमार्ण हरिद्वार जनपद के मंगलौर  में लगभग 124 करोड़ की लागत से कराया जाना है।
ज्ञात हो कि पैकेज -1 Lot-1 एवं Lot-2 के पांच सब स्टेशनों के लगभग चार सौ करोड़ के टेण्डर जिस फ्लोमोर लि. को सिंगल बिड पर दिए जाने का फाईनेंशियल बिड खोल कर जिस प्रकार किसी बड़े  स्तर के राजनैतिक दबाव के चलते अवार्ड किया जा रहा है उस फ्लोमोर कम्पनी ज्वांइट बेंचर (JB )  जिस कम्पनी से है वह चाईनीज कम्पनी जियांगसू जिंगडियन इलैक्ट्रिक कम्पनी से है। और पैकेज -2 का टेण्डर ट्रांसग्लोबल पावर लिमिटेड को लगभग एक सौ चौबीस करोड़ का अवार्ड किया जा रहा है।
उल्लेखनीय यहां यह नहीं कि महत्वाकांक्षी विकासशील इन परियोजनाओं का टेण्डर किया जा रहा जो भविष्य में विकास की गति में सहायक होगा प्रश्न यहां यह महत्वपूर्ण है कि क्या ऐसा खतरों भरा विकास देश और सीमांत प्रदेश उत्तराखंड के लिए उचित है? और वह भी कभी भी दगा कर सकने वाला पड़ोसी चाइना जो कभी भी 1959, 1962, 1967, 1987, 2017 और 2020  सहित अनेकों लड़ाईयों व हमलों और फाइरिंग में मात खा चुका है और आज भी हमारी ओर इस ड्रैगन की नियत और निगाहें दोनों ही प्रतिकूल बनी हुई हैं। एडीबी फंड्स की योजना में गोते लगाने के लिए जो खेल उत्तराखंड में खेला जा रहा है उसमें केन्द्र सरकार के वित्त मंत्रालय और मिनिस्ट्री ऑफ पावर के द्वारा जारी निर्देशों को भी दरकिनार किये जाने का षड्यंत्र दिखाईं पड़ रहा है।
इस पूरे खेल में कहीं न कहीं धामी सरकार की अप्रत्यक्ष सांठ-गांठ नजर आ रही है? और अगर यह सच नहीं तो भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार इस राष्ट्र विरोधी गतिविधी पर तत्काल ऐक्शन लेने में बैकफुट पर क्यों? क्या धाकड़ धामी की उन्हीं के सीधे आधीन मंत्रालयों पर पकड़ कमजोर हो गयी है या फिर…!
यूं तो यूपीसीएल में भी एडीबी फंडिड हजारों करोड़ के टेण्डरों व आरडीएसएस स्कीम सहित अनेंको घोटाले और भ्रष्टाचार के हैरत अंगेज कारनामें धामी सरकार की नाक के‌ नीचे घटित हो चुके हैं व हो रहे हैं।
 ज्ञात हो कि इस प्रकरण पर पिटकुल के एमडी से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया तो उन्होंने बात करने के लिए समय न होने को कह कर टालमटोल कर दी और इस धामी सरकार के आला अफसरों का पक्ष जानने और सरकारी मोबाईल फोन पर बात करना कठिन ही नहीं असम्भव हैं क्योंकि ये अधिकारी केवल बड़े मीडिया हाउसों से अथवा गोदी मीडिया से ही बात करते हैं क्योंकि उनसे इच्छानुसार खबरें छपाई और दिखाई जा सकती हैं, हमसे नहीं!
परन्तु भृष्टाचार के नाम पर केवल इस ढोल पीटू सरकार के कार्यकाल में ऐसे एक्सक्लूसिव समाचारों का पर्दाफाश वनाम लाटरी इनकी ही…! साबित हो रहा है परंतु हम हैं कि मानते नहीं और अपना कर्तब्य पालन करने में नहीं हिचकिचाते! यदि धामी सरकार भृष्टाचार पर जीरो टालरेंस की पक्षधर होती तो नाक के नीचे हो रहे घोटालों पर चुप्पी नही बल्कि ऐक्शन नजर आता और उन्हीं दागदारों की नियुक्ति का खेल ऊर्जा निगमों व उरएडआ सहित उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग आदि में न चल रहा होता तथा सरकार ब्यूरोक्रेट्स  के हाथों की कठपुतली बन नाच नहीं रही होती और समय पर उचित नियुक्तियां नियमानुसार करती ना कि हर जगह काम चलाऊ/ प्रभारियों की नियुक्तियां करते दिखाई पड़ती…?
ज्ञात हो कि कल 16 जनवरी को देखने योग्य होगा कि  पिटकुल बोर्ड की मीटिंग में इस अनैतिक और देश की सुरक्षा से जुड़े चार सौ करोड़ के इसं टेण्डर पर विराम लगता है या फिर…?

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