अवैध खनन की भेंट चढ़ा मालिनी नदी पुल का मामला पहुंचा हाईकोर्ट, सरकार से जवाब तलब

नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने पौड़ी जनपद के कोटद्वार में मालिनी नदी पर बने पुल के अवैध खनन की भेंट चढ़ने के मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रदेश सरकार से चार सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है।

इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की युगलपीठ में हुई। इस प्रकरण को कोटद्वार निवासी अक्षांश असवाल की ओर से एक जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गयी है।

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि मालिनी नदी पर बना पुल भाबर क्षेत्र के लगभग 36 गांवों की जीवनरेखा थी। यह पुल भाबर से कोटद्वार को जोड़ता था। वर्ष 2010 में इस पुल का निर्माण 12.35 करोड़ की लागत से किया गया था।

मात्र 13 साल में यह पुल अवैध खनन की भेंट चढ़ गया और इसका एक हिस्सा ढह गया। इसमें एक व्यक्ति प्रशांत डबराल निवासी हल्दूखाता की मौत हो गयी। याचिकाकर्ता की ओर से आगे कहा गया कि अवैध खनन के कारण सुखरौ और खोह नदी पर बने पुलों को भी खतरा बढ़ गया है।

याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि पुलों के एक किमी के दायरे में खनन प्रतिबंधित है। यही नहीं पुल गिरने के तीन दिन बाद ही मालिनी नदी में फिर अवैध खनन शुरू हो गया। याचिकाकर्ता की ओर मालिनी नदी पर पुल के शीघ्र निर्माण के साथ ही अन्य पुलों की मरम्मत की मांग की गयी।

याचिकाकर्ता की ओर से अवैध खनन पर रोक लगाने और अवैध खनन से पुलों की सुरक्षा की मांग भी की गयी। अदालत ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सरकार और सभी पक्षकारों से याचिका में उठाये गये बिन्दुओं पर जवाब देने को कहा है। साथ ही क्षतिग्रस्त पुलों के निर्माण के लिये योजना बनाने के निर्देश दिये हैं।

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