…और अब धनौला वाले चहेते बड़े भूमाफिया को बचाने और उसकी ईर्ष्या व प्रतिशोध में एक आईएएस दम्पत्ति के इशारों पर चल रही पूरी कबायद का खुलासा…!

 

 

अतिक्रमण पर डंडा चलाने वाली धामी सरकार की कड़क डीएम धनौला के राजस्व उप निरीक्षक व तहसीलदार की धनौला की रिपोर्ट को दबाये रखने की फिराक में है या फिर मेहरबानी ?

झूठी व भ्रामक शिकायतें बार-बार करके खुद की अवैध प्लाटिंग व कारनामों पर डाल रही डोभाल, वालिया व तलवार की‌ तिगडी पर्दा

…ताकि संविधान को वलाए ताक रखकर Same Party – Same Matter पर  दोबारा एफआईआर और गिरफ्तारी कराने की फिराक में क्यों कुलांचें भर रहा है पूरा जिला प्रशासन का अमला?
रविवार सहित दो दिन तहसील सदर सहित जिला प्रशासन झूठी ईगो बना जनहित के कामों से रहा विमुख! तहसील दिवस की भी अधिकारियों को परवाह नही : जनता रही परेशान!
….आखिर क्यों वर्तमान आयुक्त को नजरंदाज अपने बड़े साहब (पूर्व मंडलायुक्त) को खुश करना है या फिर उनके चहेतों को ईर्ष्य व रंजिश का बदला जैसे भी हो, दिलाना चाहता है?
….तो क्यों वर्तमान कमिश्नर को नजर अंदाज कर रहा है जिला प्रशासन?
मंडलायुक्त (गढ़वाल) की 23 मार्च 2023 की चिठ्ठी डेढ़ माह तक जिला प्रशासन द्वारा दबाये रखने की क्या है बजह?
कमिश्निर के निर्देशों के बाद भी दूसरे पक्ष की न सुनने के पीछे मंशा पर उठता सवालिया निशान?
क्या उचित है धामी सरकार की तेज तर्रार डीएम का एक पक्षीय रवैया और धनौला के बड़े भूमाफियाओं के दबाव व संरक्षण से सरकारी, नदी एवं रिजर्व फारेस्ट की दर्जनों बीघा जमीन एवं खनन व अवैध प्लाटिंग की कहानी?
2016 में डीएम व 2021 में आयुक रहे आईएएस के इशारों पर अब भी चलने से ही जिले में फैला है जंगल राज!
पटवारी को अनुचित प्रमोशन देकर नायब तहसीलदार का अनुचित लाभ पहुंचाने और जानबूझकर वेतन कटौती न करके लाखों के राजस्व का चूना लगाने वाले तत्कालीन डीएम पर धामी सरकार का होगा एक्शन?
ब्राह्मण वाला की वर्ग 3-घ की भूमि की बिना अधिकार 2006 में श्रेणी परिवर्तित करने वाले और शासन प्रशासन की हाई कोर्ट में फजीहत कराने वाले परगनाधिकारी / गुरूघंटाल पर होगी कार्यवाही या फिर यूं ही होगी लीपा पोती?
मीडिया को भी किया जा रहा है गुमराह!
एमडीडीए किसके दबाव में नहीं ध्वस्त कर रहा धनौला की यह अवैध प्लाटिंग?

(ब्यूरो चीफ की पड़ताल मैं हो रहे नित नए खुलासे…!)

देहारादून। आखिर वह कौन सी बजह है जिसके कारण राजधानी दून में बड़े बड़े भूमाफियाओं के हौसलें बुलंद हैं और उनके पीछे किसका हाथ व शह है, की पड़ताल मैं नित नये कारनामे सामने आ रहे हैं जिन पर धामी सरकार तो क्या ही काबू पा सकेगी? दरअसल ऐसा नहीं कि इन भूमाफियाओं पर नकेल नही कसी जा सकती है? इसके लिए पहले धामी सरकार को आस्तीन में छिपे साँपों को पकड़ना होगा जिनके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सांठगांठ व संरक्षण से ये विनाशकारी जमीनों का खेल खेला जा रहा है।

विगत दिनों जनहित और प्रदेश हित में प्रकाशित भूमाफियाओं की पड़ताल को जब और आगे बढ़ाया तो अजब गजब के कारनामों का खुलासा हुआ जिसके अनुसार शासन में कुँडली मारे बैठे कुछ भ्रष्ट तथाकथित वफादार आईएएस ही हैं इन्हीं की सूझ-बझ  और अद्भुत प्रशासनिक कार्यकुशलता के कारण अब भारतीय प्रशासनिक अकादमी कि विश्व विख्यात पढ़ाई पर भी प्रश्न (?) चिन्ह लगने लगा है क्योंकि इन आला अफसरों ने कानून और संविधान को घर की खेती समझ रखा है। यही नहीं इन पर सरकार की पकड़ और क्षमता व कार्य प्रणाली में लचीलापन व अपरिपक्वता का होना भी प्रमुख कारण है।

अधिक भूमिका में न जाते हुये सूत्रों से मिली जानकारी पर यदि गौर फ़रमाया जाये तो  उसके अनुसार वर्तमान मंडलायुक्त एवं लैंड फ्राड समिति के चेयरमैन की डेढ़ माह पहले लिखी गयी उस चिठ्ठी को यदि देंखे तो एक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से संलिप्त आईएएस के इशारों पर जिस तरह से देहरादून जिला प्रशासन की कबायद चल रही है उससे उसका असली चेहरा उजागर होने लगा है। दरअसल इस कबायद के पीछे की बजह साफ है कि आईएएस व आईपीएस दम्पत्ति के चहेतों की ईष्या व प्रतिशोध की ज्वाला को पूरा कराना ही पूरे अमले की प्रथम दृष्टया मंशा दूषित दिखाई पड़ रही है जिससे न्यायलय में विचाराधीन एक मामले के आरोपी को अब पुनः कैसे ही ऐन-केन-प्रकरेण दोबारा शिकंजे में अकारण कैसे ही जेल की हवा खिलाये जाने का है। इसी क्रम में मंसूबों पर पानी फिरता देख बौखलायी डीएम मीडिया को भी गुमराह करती नजर आयीं और एक नेशनल टीवी चैनल पर ऐसे अनभिज्ञ और अनजान बन कर गलत तथ्यों की हामी भरती नजर आयीं जो एक दम सफेद झूठ बताया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि शासन में बैठे इस विद्वान आईएएस के ऐसे अनेकों कारनामें हैं जिनका खामियाजा आज भी सरकार भुगत रही है। इस विद्वान नायक ने उत्तराखंड लोक सेवा प्राधिकरण में डीएम रहते हुए अपने शपथ पत्र में जो कहा था उसके आशय के अनुसार लेखपाल जसपाल राणा की नियुक्ति में 14-12-1988 से ही मानी जानी चाहिए क्योंकि उनकी सर्विस में ब्रेक आ चुका था और वे दिल्ली विकास प्राधिकरण में नौकरी करने चले गये थे। इस कारण उनकी नियुक्ति 11-11-1987 से 13-12-1988 के साथ दूसरी जगह नियोजन के कारण सर्विस ब्रेक मानी जानी चाहिए और उन्हें इसके विपरित अनदेखा कर दिए गये आर्थिक लाभ व प्रमोशन लाभ गलत है।

ज्ञात हो कि लेखपाल की नौकरी से शुरू हुई जसपाल राणा अभी हाल ही में 30 अप्रैल को नायब तहसीलदार (सदर) के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

मजेदार बात यहां यह है कि उक्त बड़े साहब अपने डीएम के कार्यकाल में दिए गये अपने शपथ पत्र में मान भी रहे हैं किन्तु उस पर स्वयं अमल करने से कतराते हुये खासमखास को अनुचित डबल ट्रिपल लाभ व सरकारी नियमों की अनदेखी एवं अनुचित वेतन वृद्धि पर रोक न लगाकर राजस्व को चूना किस बजह से लगवाते चले आये और धज्जियां उड़ाते रहे, इनका यह कृत्य चिंता व गम्भीर कार्यवाही का विषय है?

यही नहीं मान्यवर के द्वारा ही अपने एसडीएम कार्यकाल 2006 में ब्राह्मणवाला की खाता संख्या 01566 की भूमि का बिना किसी अधिकार के श्रेणी परिवर्तन कर दिया गया जिसका खामियाजा आज तक शासन प्रशासन व कभी रिवर फ्रंट, कभी एमडीडीए और कभी वक्फ बोर्ड तो कभी सद्भावना फल एवं सब्जी समिति, अल्प संख्यक विभाग आदि भुगत रहे हैं और सरकार की फजीहत माननीय उच्च न्यायालय में निरंतर हो रही है। यही नहीं इस जमीन की गलतियों को सुधारने में जिस तरह की कुलांचे शासन प्रशासन उक्तत महाशय की गलतियों पर पर्दा डालने के लिए दर्जनों बार भर चुका है जो सरकार व उसके शासन की सूझबूझ पर गम्भीर प्रश्न  (?) चिन्ह लगा रहे हैं।

क्या जानबूझकर खिलायें गये इन आईएएस महाशय पर धामी सरकार का कोई एक्शन होगा या फिर इन्हें दोबारा प्रशिक्षण हेतु अकादमी भेजा जायेगा? या फिर यूं ही बंटाधार कराया जाता रहेगा?

देवभूमि उत्तराखंड में जंगल राज की बजह कोई खास नहीं है केवल और केवल प्रमोटी अनुभवी एवं परिपक्व आईएएस को वर्षों से नीचा दिखाने और धत्ता बताने कि रवैया भी है जो अप्रत्यक्ष रूप से इन सीधे आये आईएएस में दूर नहीं हो रही है यही नहीं उत्तराखंड के आईएएस और आईपीएस में भी गुटबाजी अपने दांत पैने किये हुए हैं जिस पर स्वच्छ शासन के दृष्टकोण से सफाई अनिवार्य दिखाई पड़ रही है!

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