…और अब शासन के आदेशों के साथ-साथ अपने ही आदेश की उड़ा रहे एमडी यूपीसीएल खुद धज्जियां

क्या धामी की धाकड़ सरकार ढीली पड़ गयी है या फिर…?

शासन की रोक के बाद भी धामी सरकार में  बेधड़क एमडी को किसकी शह?

वाह जी, वाह : पदोन्नति भी लेली और नियम विरुद्ध मनचाही तैनाती भी?  एक ही आफिस में दो-दो अधीक्षक?

बजाए एक्शन के एमडी साहब की मेहरबानी से फिर 32 सालों तक जहां रही तैनाती, वहीं फिर करा ली तैनाती?

क्या यह टेण्डरों के खेल में हिस्सेदारी और लूट खसोट की देन तो नहीं?

देहरादून। चाहे TSR सरकार रही हो या फिर धामी सरकार : अपनी तो चालेगी भी और दागेगी भी! क्योंकि शासन में पकड़ बनाये रखने वाले काॅकश को इससे कोई फर्क नहीं पडता कि सीएम कौन? जो भी सीएम आयेगा इनके शीशे में ऐन-केन-प्रकरेण उतर ही जायेगा। तभी तो शासन के आदेशों की धज्जियां उड़ानें में माहिर यूपीसीएल के चर्चित एमडी बेधड़क व बेखौफ होकर माननीय सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों की गाइड लाइन एवं सेवा नियमावली में निहित पदोन्नति की शर्तों और दस दिनों के अंदर ज्वाइनिंग न करने वाले कार्यालय अधीक्षक पर बजाए एक्शन के मेहरबान हैं।
सूत्रों की अगर यहां यह भी मानें तो उत्तराखंड पावर कारपोरेशन के विद्युत वितरण खंड (ग्रामीण) देहरादून में अपनी लगभग 32 साल पुरानी नियुक्ति से अब तक शुरू से ही निविदाओं जैसे मलाईदार कुर्सी को पकड़े बैठे एक सहायक से चार चार प्रमोशन पा चुके नौटियाल महाशय ने विगत 3 अप्रैल को कार्यालय अधीक्षक प्रथम के पद पर पदोन्नति भी ले ली और पदोन्नति से सम्बंधित कार्यालय ज्ञाप संख्या 1078 के अनुपालन का दबंगई से उल्लंघन करते हुये दस दिनों के अन्दर नवीन तैनाती स्थल‌ नगरीय विद्युत वितरण मंडल देहरादून रास न आने के कारण या फिर मनचाहा न होने के फलस्वरूप “सैंया भरे कोतवाल तो डर काहे…” की कहावत को चरितार्थ करते हुए  18 दिनों बाद एमडी यूपीसीएल से पुनः कार्यालय ज्ञाप संख्या 1262 दिनांकित 21अप्रैल,2023 जारी करवाने में सफलता हासिल कर कीर्तिमान स्थापित कर लिया तथा उसी दिन ज्वाइनिंग भी देकर एक कार्यालय में दो दो अधीक्षक की परिपाटी डाल दी।
आश्चर्य यह नहीं कि तैनाती मनचाही करा ली। आश्चर्य तो इस बात का जब एमडी की ट्रान्सफर पावर ही शासन द्वारा प्रतिबंधित चल रही हैं तो ऐसे में इस खास पर मेहरबानी क्यों? क्या शासन के निर्देशों और अपने पूर्व के आदेश एवं पदोन्नति के नियमों का उल्लंघन उचित है? मजेदार तो बात तो यह भी है 32 वर्षों तक एक ही डिवीजन में कैसे तैनाती रही और किस नियम के अन्तर्गत चार चार पदोन्नतियां मिलती रहीं? दूसरा सबसे शानदार तथ्य यह भी चर्चा में है मेहरबान, दयाभाव एमडी ने यूपीसीएल के हित को न देख कर चहेते की नियुक्ति फिर वहीं कर दी जहां पहले से ही एक कार्यालय अधीक्षक तैनात है। क्या एक कार्यालय में दो दो कार्यालय अधीक्षक की तैनाती उचित है? कैसे होगा काम और किस पर पड़ेगा यह अतिरिक्त बोझ? क्या पदोन्नति पत्र के उल्लंघन पर पदोन्नति निरस्त नहीं होनी चाहिए और एमडी महोदय को एक्शन नहीं लेना चाहिए था? एक्शन तो कहीं भी प्रतिबंधित नहीं था, स्थानांतरण प्रतिबंधित अवश्य था, फिर यह सब खेल किसकी शह पर खेलें जा रहें हैं क्या धामी की धमक बेअसर हो गयी है या फिर…?

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