राजधानी दून के नशामुक्ति केन्द्र हैं या कसाई खाने : एक और बच्चे को पीट पीट कर हत्या

पूरी रात तब तक मारते रहे, जब तक दम नहीं निकला?
….और फिर चुपचाप फेंक आये!
डीएम को भी 18 घंटे तक खबर नहीं?
दोनों थानों की पुलिस दूसरे क्षेत्र का मामला बता, झाड़ रही पल्ला!
परिजनों का उत्पीड़न कर उनसे जबरन वसूलते हैं कई गुना मासिक शुल्क!
नशे की लत नशा खिलाकर छुड़ाते नहीं बुलाते हैं ये?
जहां स्टाफ और मालिक हैं खुद नशेड़ी, वहां कैसे होगा उपचार?

(ब्यूरो चीफ एस गुप्ता)

देहरादून। राजधानी दून के नशा मुक्ति केन्द्रों की ओर या तो शासन प्रशासन और पुलिस की पकड़ कमजोर है या फिर इनकी पहुंच के आगे ये सब बौने साबित हो रहे हैं तभी तो इनमें नियम विरुद्ध गतिविधियां तथा संचालकों की मनमानियां परवान चढ़  हुई हैं। यही नहीं नशे से मुक्ति के लिए भर्ती कराया गये बच्चे और नशेड़ी  यहां एक नये अपराध की दुनिया में जीवन जीने को मजबूर रहते हैं क्योंकि वे घर जायें तो जायें कैसे। इन नशा मुक्ति केन्द्रों पर नशे की लत छुड़ाने के लिए परफैक्ट चिकित्सक नहीं वल्कि उनके स्थान पर मशलमैन और बाक्सर रखें हुए हैं जिनके बल पर यहां उपचार हेतु भर्ती मरीज ऐसे कांपते हैं जैसे सर्कस में रिंग मास्टर के सामने शेर और हाथी।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राजधानी दून के पटेल नगर अधवा क्लेमन टाऊन थाना क्षेत्र अन्तर्गत एक नशा मुक्ति केंद्र पर गत रात्रि एक बच्चे को यहां के स्टाफ ने इतनी बेरहमी से उसकी तब तक पिटाई की जब तक उस बच्चे सिद्धार्थ का दम नहीं निकल गया। बताया तो यह भी जा रहा है कि जब बच्चे की पिटाई से मौत हो गई तो इस केन्द्र के बेरहम संचालक और स्टाफ उसे उसके घर के बाहर चुपचाप फेंक आये। उक्त हत्या सोम मंगल की रात्रि करीब दो बजे की बताई जा रही है? उक्त नशा मुक्ति केंद्र में कोई परिवर्तन नजर नहीं आया जबकि इसी केन्द्र पर विगत दिनों शायद इसी प्रकार के कसाईपने का मामला उजागर हुआ था और के ई लड़कियां ग्रिल तोड़कर भागने को मजबूर हो चुकी हैं।

मजे की बात यहां यह है कि थाना पटेल नगर एसओ और थाना क्लेमन टाऊन एसओ दोनों ही इस जघन्य आपराधिक  मामले को एक दूसरे   थाना क्षेत्र का मामला बता टाल मटोल करते नजर आ रहे थे।

जब हमारे द्वारा दून की जिलाधिकारी महोदया से जानकारी चाही गई तो उन्होंने एसएसपी से बात  करती हूं, कह दिया। इसका अभिप्राय तो यही हुआ कि अठारह घंटे तक जिले की जिलाधिकारी को भी ऐसी घटना से अनिभिज्ञ रखा गया या फिर…?

उल्लेखनीय यह नहीं कि यह जघन्य अपराध की घटना कोई पहली घटना हो। इससे पहले भी यहां के कुकुरमुत्तों की तरह ना मुक्ति केन्द्रों पर उत्पीड़न और अत्याचारों व नियमों की खुले आम धज्जियां उड़ाये जाने के मामले घटते रहे हैं। तथा प्रशासन व पुलिस के द्वारा औपचारिकता स्वरूप ढोल पीटने के उद्देश्य से अभियान भी चलाया गये, परंतु समस्या जब की तस बनी रही और धंधे बाजों का नशा मुक्ति केंद्र का व्यवसाय बिना किसी नियम व कानून के धड़ल्ले से  चल रहे हैं। इन नशा मुक्ति केन्द्रों पर अधिकांश प्रशिक्षित स्टाफ व नियमित चिकित्सक भी नहीं हैं।

यही नहीं यहां भर्ती नशे की लत से छुटकारा दिलाने की आशा और उम्मीद करने वाले परिजन भी इनकी तानाशाह पूर्ण रवैये के शिकार होते रहते हैं। आरोप यह भी है कि ये संचालक कम से कम छः छः महीने कई के ई जबरन  ऐेठते हैं भले ही मरीज को एक महीने ही रखा है।

देखना यहां गौरतलब होगा कि प्रशासन और पुलिस इस जघन्य आपराधिक घटना पर क्या कार्यवाही करती है!

 

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