विद्युत नियामक आयोग ने फिर आपत्तियों को नकारते हुए मारा जोर का झटका, दरों में की बढ़ोतरी

फिर नजर आया नियामक आयोग का पक्षपाती रवैया और थोपी बढ़ोत्तरी
उपभोक्ताओं के बार बार उत्पीड़न के विरुद्ध हाईकोर्ट में दायर होगी याचिका 
जनसुनवाई तो दिखावा ही दिखा और फिर चला गेटिंग और सैटिंग का खेल?
(ब्यूरो चीफ एस गुप्ता की खास समीक्षात्मक रिपोर्ट)

देहरादून। उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग ने आज एक खास प्रेस कांफ्रेंस में पिंक एण्ड चूज के आधार पर पत्रकारों को बुला कर उनसे वार्ता करते हुए चार चार स्थानों पर की गयी जनसुनवाई को धत्ता बताते हुए अपना एक पक्षीय आदेश ऊर्जा विभाग के  विद्युत निगमों‌ के पक्ष में आयी लगभग सभी आपत्तियों को एक सिरे से खारिज करते हुए उपभोक्ताओं के हितों की ओर से आंखें बंद करते हुए बिजली दरों में अनापेक्षित वृद्धि का फरमान सुना दिया। यह फरमान ऊर्जा प्रदेश उत्तराखंड के उपभोक्ताओं पर आगामी एक अप्रैल से प्रभावी हो जायेगा। बात यहीं तक और इतनी ही नहीं है यह भी हो सकता पिछले वर्ष की तरह फिर इस वर्ष भी तीन या चार बार बिजली के रेट बढ़ जाएं तो कोई अचरज  मानें।

ज्ञात हो कि हमेशा की तरह इस वर्ष भी नियामक आयोग ने आम घरेलू व छोटे कामर्शियल उपभोक्ताओं पर ऐसा निर्णय सुनाया जिसे लेकर उपभोक्ताओं मे रोष तो है ही  साथ साथ इस आदेश को दोहरी मार वाला आदेश बताया क्योंकि जिस जिस कैटेगरी में इन अप्रत्याशित दरों की वृद्धि की गयी है उसकी मार भी जनता पर ही अप्रत्यक्ष रूप से पड़नी है। जैसे रेलवे़ के लिए नयी दरों से बिजली पर बढ़ोत्तरी की गयी है वह बढ़  हुई दरों की मार भी आखिरकार जनता को ही झेलनी होगी। यदि नियामक आयोग ऐसा ही निर्णय देने का आदी हो गया है तो जनहित में इसे भंग होना चाहिए!

पढ़िए टैरिफ आर्डर….

उल्लेखनीय तो यह भी है कि एक डबल इंजन के नाम पर लाभ ही लाभ के सब्जबाग दिखाने वाली प्रदेश की सरकार के मुखिया पुष्कर सिंह धामी के सीधे आधीन है ऊर्जा मंत्रालय जो भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूबा हुआ है और “रोम जल रहा और न्यूरो बंसी ही बजाता रहा” की कहावत चरितार्थ हो रही है। यूपीसीएल में भ्रष्टाचारों में अकुंश लगा पाने में असफल धामी शासन के कारण ही बिजली दरों में वृद्धि होती है यदि भ्रष्टाचार पर अंकुश हो और साफ सुथरी छवि वाले ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ प्रबंध तंत्र हो तब दरों में वृद्धि की नौवत ही नहीं आ सकती।

तो इस प्रदेश को जिसे ऊर्जा प्रदेश कहा जाता है, में कोई शक नहीं कि ऊर्जा जनता को पूरे देश में सबसे सस्ती और मुफ्त भी मिल सकती है! परंतु इस प्रदेश का जो हाल यहां की सरकारों और शासन व आयोगों में बैठे कुछ आला अफसरों ने कर दिया है वह धीरे धीरे इस देव भूमि को दानव भूमि बनने की ओर अग्रसर कर रही है।

यहां यह भी उल्लेख करना आवश्यकदिखाई  पड़ रहा है जब तक यहां की सरकारें शासन में बैठे आला अफसरों को अपनी निजी स्वार्थों और जेबों की कमाई का साधन मात्र समझती रहेगी और इन आयोगों, निगमों और प्राधिकरणों में भारी रकमों वाला सोने का चश्मा चढ़ाकर नियुक्तियां करती रहेगी तब तक इन नियुक्तियों वाले आयोगों के सदस्य और अध्यक्ष, निदेशक, प्रबंध निदेशक, उपाध्यक्ष आदि किसी न किसी रूप में जो देकर आये हैं उसकी बसूलई ब्याज और लाभ सहित करेगे ही?

इस चर्चा को भी नकारा नहीं जा सकता कि विद्यूत नियामक आयोग भी इसी परिपाटी का शिकार है तभी तो अपनी दी हुई भेंट पूजा की वसूली बिजली चोरी करने वाले बड़े उद्योगों पर अपने आधीन ऊर्जा निगमों से कराने में नाकाम है यही नहीं इस प्रकार के टैरिफ से यह भी यहां स्पष्ट है कि बड़ों को टैरिफ लाभ और छोटे उपभोक्ताओं पर तोहमत में भी खासा डेटिंग सैटिंग का खेल होता है जनसुनवाई तो दिखावा है। जारी… सम्पूर्ण तुलनात्मक विश्लेषण के पश्चात 

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