एम्स रिषीकेश : ऊंची दुकान, फींका पकवान ! आंख बंद कर होती है डाक्टरों की भर्ती यहां?

इस आपराधिक दुष्कृत्य में एससी एसटी अम्ब्रेला बाधक कहां?

.….जब ये फर्जी पाये गये, तो एक्शन में देरी क्यों?

नौकरी पाने की दुर्भावना से गलत अनुभव क्षम्य क्यों?

ऐसे प्रोफेसर होंगे तो डाक्टरों की प्रोडक्शन कैसी होगी?

गजब : बायोकेमिस्ट्री विभाग में एमडी चिकित्सक की बजाए एक वेटनरी डाक्टरेट सर्जन को नियुक्ति?

क्या मेडिकल कौंसिल इन चिकित्सकों पर स्व संज्ञान लेगी?

एम्स प्रबंधन की चुप्पी से खतरे में विश्वसनीयता !

( इनकी गम्भीरता को झकझोरती ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता की एक तहकीकात)
रिषीकेश (देहरादून)। भारत वर्ष में सातवें नम्बर पर स्थापित एम्स रिषीकेश इन आशंकाओं और आकांक्षाओं से केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित किया गया ताकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित उत्तराखंड के लोग इसकी चिकित्सीय सेवाओं का लाभ ले सकें और इस अखिल भारतीय स्तर के चिकित्सा अनुसंधान संस्थान से उच्च कोटि के चिकित्सक मिल सकें परंतु यहां भी कुछ स्वार्थी और भ्रष्टतंत्र अपने पैर जमा लेगा किसी को अन्दाजा भी नहीं रहा होगा। ऐसा ही एक मामला प्रकाश में आया है जिसके अनुसार योग व प्रकांड पंडितों की नगरी में गुरू घंटाल के पाये जाने का है। यही नहीं जब जनजीवन से रक्षा करने वाली शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षक (प्रोफेसर और सहायक प्रोफेसर) ही अयोग्य होंगे तो उनके द्वारा दी गयी शिक्षा व चिकित्सा सेवा कैसी होगी इसका अनुमान बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है। बात यहीं तक ही सीमित नहीं है बल्कि यहां तो एम्स प्रबंधन द्वारा ऐसे अयोग्य व जानबूझकर कर आंख में धूल झोंकने वाले दुस्साहसी लोगों पर एक्शन लेने और उनके विरुद्ध फर्जी तथ्यों के आधार पर नियुक्ति पाये जाने के विरुद्ध दण्डात्मक प्रक्रिया अपनाये जाने में भी उदासीनता बरती जा रही है। इस उदासीनता और जानबूझकर की जा रही लापरवाही का परिणाम यहां तक पहुंच गया है कि 2015-16 में भी इस प्रकार की घालमेल‌ वाली नियुक्तियों की पुनरावृत्ति भी धड़ल्ले से हो गयी और इन नियुक्तियों में तीन चिकित्सकों की नियुक्तियां संदिग्ध हैं जिनकी शिकायतें भी 2011-12 की आधा दर्जन नियुक्तियों की शिकायतों की तरह धूल फांक रही हैं।
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार 2011-12 में एम्स द्वारा की गती नियुक्तियों में जिन पांच डाक्टर्स की नियुक्तियां संदिग्ध पायी गती हैं उनमें डा. लतिका, डा.अनीसा आसिफ, डा. रजनी, मोहम्म. सलाउद्दीन एवं डा. कुमार सतीश रवि के नाम चिन्हित हुए हैं तथा दि 18-12-2014 को गठित छ सदस्यीय जांच कमेटी द्वारा प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में भी अयोग्य पाये गये हैं।
देखिए रिपोर्ट…..
ज्ञात हो कि इस कथित धांधलेबाजी की शिकायत पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मंसुख मांड्या, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद तीर्थ सिंह रावत व महिला आयोग द्वारा भी इस सम्बंध में कार्यवाही हेतु लिखा गया है। निवर्तमान प्रभारी निदेशक डा.अरविन्द राजवंशी ने अपने कार्यकाल में उक्त प्रकरण को गम्भीरता से लेते हुए सख्त कार्यवाही की दिशा में कदम उठाया था किन्तु तब तक उनके स्थान पर पूर्णकालिक निदेशक। डा.मीनू सिंह की नियुक्ति हो गयी। उक्त प्रकरण सहित 2015-16 में इसी तरह हुई संदिग्ध नियुक्तियों में जिनमें‌ डा. निशांत गोयल, डा. नवनीत कुमार एवं डा. (ब्रिगे.) एस के सक्सेना के नाम हैं पर डा. जया चतुर्वेदी एवं डा. मनोज गुप्ता की संयुक्त जांच कमेटी भी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर चुकी है। निदेशक एम्स द्वारा ऐसे संगीन मामलों पर चुप्पी साधे बैठे रहना भी अनेकों सवालों की श्रृंखला बना रहा है।
सूत्रों की अगर यहां माने तो एम्स प्रबंधन एक प्रभावशाली असिस्टेंट प्रोफेसर डा. रवि के दबाव के कारण और एससी एसटी एक्ट के तथाकथित अनुचित भय के प्रभाव में है, जबकि भारतीय संविधान में आपराधिक दुष्कृत्य पर कोई माफी नहीं है। बताया तो यह भी जा रहा है कि उच्च न्यायालय के निर्देशों के उपरान्त भी एम्स सही कार्यवाही करने से कतराता दिखाई पड़ रहा है।
इन नियुक्तियों में अभ्यर्थियों द्वारा आपराधिक दुष्कृत्य करते हुए‌ अपने को योग्य ठहराने हेतु जानबूझकर कर गलत दस्तावेज प्रस्तुत किये गये और अनुभव के मापदंडों को मेरा फेरी करके पूरा किया गया तथा एम्स जैसे उच्चस्तरीय व ख्याती प्राप्त संस्थान में नियुक्ति पा ली गयी। उदाहरणार्थ डा. रवि की नियुक्ति और उनके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों पर यदि गौर फ़रमाया जाए तो डा. रवि द्वारा अपने आवेदन के साथ संलग्नक के रूप में लगाते गये शैक्षिक विवरण में Post graduate MD ANOTOMY – 2006-2009 में दर्शाया गया है वहीं मेडीकल कौंसिल आफ इंडिया के सार्टीफिकेट न. 11-10330 दिनांकित 28-7-2011 एमडी, (एनाटोमी) JIPMER, PUDUCHERRY 2011 में दर्शाई गयी है। यही नहीं इंडियन मेडिकल रजिस्टर के view’IMR Detail में भी MD (ANOTOMY) का qualification year 2011दिखाया गया है। इस प्रकार डा. रवि द्वारा अनुभव की वांछित सीमा को पूरा करने के लिए कहीं एमडी, एनाटोमी को 2006-2009 में पूरा किया जाना दिखाया गया है ताकि वे नियमानुसार न मिलने वाली नियुक्ति पा सकें।
अब ऐसे में स्वयं ही गौरतलब है कि जिन शिक्षा दीक्षा देने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर और चिकित्सक की खुद की योग्यता ही ग़लत हो वे भला क्या तो‌ शिक्षा देंगे और क्या ही इलाज करेगें।
ज्ञात हो कि दि 18-12-2014 को गठित छ सदस्यीय जांच कमेटी द्वारा प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि “Not eligible due to short experience” तथा कुछ के बारे में कुछ अन्य कमियां बताई गयीं है। ऐसे में इनकी नियुक्तियां रद्द किये जाने और नियुक्ति पत्र की चरण संख्या 15 का अनुपालन में विलम्ब क्यों? यही नहीं इन अनिमतताओं पूर्ण नियुक्तियों से सही व योग्य पात्रों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है जिसका खामियाजा कौन भुगतेगा, यह तो समय‌ ही बतायेगा?
मजेदार बात तो यहां यह भी है कि बजाए एक्शन के इनमें से कुछ के तो प्रमोशन कर उन्हें अनुचित सभी लाभ भी दिये जा रहे है। इन तथाकथित आरोपियों को अभी तक चार्जशीट भी नहीं दी गयी है। इन गलत नियुक्तियों से जहां नैसर्गिक न्याय का ह्रास हो रहा है वहीं नियम विरुद्ध, फर्जी दस्तावेजों और तथ्यों पर हुई इन नियुक्तियों पर अभी तक कोई एफआईआर नहीं कराई गयी है। यही नहीं जब वर्तमान निदेशक के कार्यकाल में भी एक गजब के कारनामे को अंजाम देने का मामला प्रकाश में आ रहा है कि एम्स के बायोकेमिस्ट्री विभाग में एमडी चिकित्सक की बजाए एक वेटनरी सर्जन पीएचडी की हैरत अंगेज नियुक्ति की गयी है? कहीं यही कारण तो एक्शन में वाधक तो नहीं?
उल्लेखनीय है कि इन दोनों प्रकरणों पर एम्स की निदेशक डा.मीनू सिंह से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया तो उनके मोबाईल काल पर की बार कोई रिस्पांस नहीं मिला। वहीं निवर्तमान प्रभारी निदेशक डा. अरविन्द राजवंशी ने इस प्रकरण को काफी पेचीदा बताया। डा. जया चतुर्वेदी व डा. मनोज गुप्ता ने बताया कि वे काफी समय‌ पूर्व ही अपनी‌ रिपोर्ट प्रस्तुत कर चुके हैं तथा रजिस्ट्रार राजीव चौधरी के अनुसार जांच अभी निर्देशक मैडम के यहां विचाराधीन है।
क्या उक्त दोनों गम्भीर प्रकरणों पर अब प्रधानमंत्री मोदी को ही स्वयं संज्ञान लेना होगा या फिर चेयरमैन डा.नंदी एवं उप निदेशक (प्र.) एम्स ले.कर्नल मुखर्जी सहित वरिष्ठ अधिकारियों को ही संज्ञान लेना होगा या फिर ढुलमुल रवैया त्याग कर निदेशक महोदया कोई कड़ा कदम इस दिशा में उठायेगी न ताकि एम्स की छवि और गुणवत्ता और प्रभावित न हो! क्या इन आपत्तीजनक स्वार्थवश की गयीं नियुक्ति करने वालों पर भी कोई दण्डात्मक कार्यवाही अमल में लायी जायेगी या फिर यूं हीं और घोटालों की तरह इसे भी दबाने का प्रयास किया जायेगा?
 देखिए कुछ दस्तावेज, जो स्वयं ही एम्स की कलई खोलने के लिए पर्याप्त हैं …..

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