डीएम साहब, अब तो सुध ले लीजिए इस उपेक्षित राजधानी की तहसील सदर की!

खुद की राह. परिषद से डिमांड, तो फिर अब देरी क्यों?
वेतन तहसील सदर से तो फिर तैनाती रिषीकेश क्यों?
सात तहसीलों में से छः बिना तहसीलदार के?
क्या यही है धामी का सुशासन और सेवा  का अधिकार ?
सोता शासन ही है, इन उपेक्षाओं और राजस्व अधिकारियों व कर्मियों की भारी कमी का कारण?
डुअल और ट्रिपल चार्ज की स्वार्थी परिपाटी से ही पनपता है भ्रष्टाचार और जनता होती है परेशान

(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता)

देहरादून। प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण विभाग जिसके सीधा प्रभाव और सम्पर्क सीधे जनता से होता है वे हैं तहसील, अस्पताल और सुरक्षा। यदि तुलनात्मक रूप से इस प्रदेश का इनमें से विष्लेषण किया जाये तो यहाँ का राजस्व विभाग सर्वाधिक अव्यवस्थित और उपेक्षित पाया जायेगा। शासन में बैठे आला अवसरों और सरकार को केवल मीटिंग मीटिंग और उद्धाटन एवं शिलान्यासों से फुर्सत मिले तब?

भाषण और जुमलेबाजी तो गाहे बगाहे जब तब राज्यपाल से लेखपाल तक फाईलों का घूमना और सीएम से डीएम तक कभी जनता दरबार और कभी तहसील दिवस तो कभी कोरियर अव्यवहारिक भाषण बाजी सुनने क मिलती रहती है साथ ही रह भी सुनाई पड़ता है कि फाईलों के निस्तारण तुरंत हो आदि आदि। परंतु सब राजस्व विभाग की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी में आने वाली तहसील में पूर्णरूपेण तहसीलदार और परिपक्व नायब व अपर तहसीलदार सहित कानूनगो और लेखपाल (पटवारी) ही नहीं होंगे तो काम समय पर तथा सही कैसे सम्भव होगा? पिछले लगभग पचीस वर्षो पूर्व अधिकारियों और पटवारियों की तहसील स्तर पर जो पद थे आज भी वही हैं जबकि कार्य चार से छः गुना हो गया तथा स्टाफ रिटायर होता चला जाता रहा है और पद खाली होते जिन रहे हैं परिणामस्वरूप जनता परेशान और पटवारी व अधिकारी कर रहे एहसान। क्या इस तरह से किसी भी राज्य में सुशासन, और समय पर न्याय व राजस्व विभाग के काम हो सकते हैं?

ऐसा ही प्रमुख उदाहरण उत्तराखंड की राजधानी तहसील सदर का है। यहाँ पिछले आठ माह से अक्टूबर से बिना तहसीलदार के ही तहसील चरमराती व्यवस्था में चल रही है और जनता तथा किसान व ग्रामीण जनता इधर उधर भटक रही है। एक एक पटवारी व अधिकारी पर दो-दो और तीन – तीन चार्ज से कुछ तो मौज में हैं और कुछ मीटिंगों और सरकारी अतिरिक्त ड्यूटियों से परेशान हैं अगर काम करना भी चाहे तो आदेश निर्देश देने वाले योग्य, प्रशिक्षित तहसीलदार, अपर तहसीलदार नहीं हैं व जी हैं भी वे अनेंकों चार्ज के बजट से नदारद? जनता जाये तो जाये कहाँ ? कैसे हों उसके ठीक प्रकार से दाखिल खारिज और कैसे दर्ज हो विरासत या फिर कैसे हो सुनवाई विचाराधीन अम्बार लगा राजस्व मुकदमों का? इस तहसील सदर में अपर तहसीलदार के भी पद विगत लगभग तीन वर्षो से रिक्त पड़ा है।

सूत्रों की अगर माने तो शासन व सत्ता के दबाव में तहसील सदर में तैनात नायब तहसीलदार को ही अनेंको चार्ज दिये हुये है और अब वमुश्किल तमाम डीएम और सडीएम सदर के राजस्व परिषद से अनुरोध पर एक तहसीलदार जिले को मिला भी तो उन महाशय की डीयर साहब ने जो तैनाती के है वह भी अपने आप में तहसील सदर की और उपेक्षा के परिधि में ही आती है क्योंकि साहब के स्थानीय व्यवस्था में किए गये उक्त आदेश में उक्त तहसीलदार मुकेश रमोला के वेतन तो सदर से दिया जायेगा किन्तु वे काम रिषीकेश यात्रा के कार्य देखेंगे जबकि रिषीकेश तहसील में पर्याप्त अधिकारी हैं।

इस तरह के आदेश से ऐसा प्रतीत होता है कि तहसील सदर को अभी और उपेक्षा भुगतनी पडे़गी। यही नहीं इस तहसील का स्थिति अभी बद से बद्तर होने वाली है और शीघ्र ही कानूनगो के भी खासा टोटा होने वाला है तीन कानूनगो के आवश्यकता के विपरीत दो पद कानूनगो के सेवानिवृत्ति के कारण और रिक्त हो रहे हैं। वर्तमान ट्रिपल चार्ज वाले नायब तहसीलदार के कार्यप्रणाली से जनता पहले ही त्रस्त है।

बताया तो यहाँ रह भी जा रहा है कि एसडीएम सदर की सुस्त कार्यप्रणाली और अव्यवहारिक रवैये से वैसे ही परगना सदर के किसान, भूमिधर व वादी और परिवादी परेशान हैं क्योंकि साहब आईएएस भी हैं और शीघ्र आईएस के फुलफ्लेच पोस्टिंग की फिराक और ऊहापोह के स्थिती में है जिससे साहब के यहाँ फाईलें निस्तारण किए बजाए पहाड़ जैसा ढेर में परिवर्तित होती जा रही हैं और वाद विवाद बढ़ रहे हैं तथा जमीनों सम्बंधी अराजकता जैसी स्थिति बन गयी है?

क्या कुम्भकर्णी नींद में सोने वाला शासन समय पर नियुक्तियों और तैनाती के व्यवस्था करेगा या फिर आरामगाह बने सचिवालय और राजस्व परिषद में बैठ कर निष्फल वाली मीटिंगे ही करता रहेगा? सरकार बातें तो सुराज और सेवा का अधिकार को भी करती  है परंतु क्या समय पर सही से़वायें मिलती हैं उसे

देखना यहाँ गौरतलब होगा कि देहरादून के तेज तर्रार जिलाधिकारी तहसील सदर की सुध लेते हैं या फिर यूँ ही इस तहसील को उपेक्षित ही रहेंगे?

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