समीक्षा बैठक : सीएम व सीएस से भी छल-फरेव करने में नहीं चूके एमडी पिटकुल

झूठ पे झूठ बोलता  है ये एमडी!

साँठगाँठ के चलते करोंडों की लागत वाली 220/33 केवी वरम – जौलजीवी ट्रांसमिशन लाईन का काम सात साल से अधूरा भी नहीं ?

पुरानी दोस्ती के चलते ही नहीं लिया ड्रैकन स्कल पर एक्शन, मढा़ झूठा दोष निदेशक वित्त पर? जो रास नहीं आया लग
नियामक आयोग में किये वादे को पूरा करने नाकाम हुये साबित : कम्पलीशन के डेट फिर बढ़ाई!
65 करोड़ का फंड ब्लाक, बरम सबस्टेशन से पहले ही पूर्ण हो जानी थी ये सीमांत क्षेत्र की लाईन!
उत्तर प्रदेश कर चुका है इसी को 2017 में इसी ड्रैकन की  14 करोड़ की परफार्मेस बैंक गारंटी जब्त!
NCLT चंडीगढ़ में इनसाल्वेंसी में 2018 में ही दिवालिया हो चुका है ये कान्ट्रेक्टर!
फिर भुगतान कराने में एमडी की दिलचस्पी के राज?
क़ाबिले तारीफ और अजब गजब के होते हैं, एक्शन हैं मुख्यमंत्री के?

….पर जहाँ रोज हो रहे करोडों के बारे न्यारे उसे संरक्षण क्यों?

बिना डायरेक्टरों और एमडी वाले पिटकुल को यूपीसीएल में ही मर्ज कर दो, सीएम साहब!
सचिव ऊर्जा की कृपा रही तो अब छठे चार्ज के साथ छक्का भी मार सकते हैं जनाब!
ड्अल चार्ज के चलते अधीक्षण अभियंता मुख्यालय में बैठ कर देख रहे हैं वरम-पिथौरागढ़!
(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता)

देहरादून। प्रदेश की तेज तरार्र मुखिया और मुख्य सचिव की आँखों में जो बड़ी आसानी से धूल झोंकने में सफल हो जाये तो स्वतः ही समझ लिया जाना चाहिए कि धूल झोंकने और गलत आँकडे़ प्रस्तुत करने वाला कितना शातिर होगा जिसने सीएम व सीएस की कार्य कुशलता और कार्य प्रणाली पर सवालिया निशान (?) लगवाते हुये बता दिया कि “तुम क्या जानो…?”

यूँ तो समीक्षा बैठकें होती ही रहती हैं पर इन समीक्षा बैठकों में किस तरह से जनधन एवं अधिकारियों के समय की बरबादी के साथ जो माखौल उडा़या जाता है वह यहीं से नजर आता है और तरस आता है इनकी शासकीय प्रणाली पर, जो कुछ कम आश्चर्यजनक नहीं है। यही नहीं ये दिखावटी समीक्षा बैठकें केवल आमना सामना नैन मट्टक्का बैठकें और सम्बंधों की प्रगाढ़ता, पीआरशिप और वाह वाही लूटने का साधनमात्र बन कर ही रह गयीं है, ऐसा स्वतः ही दिखाई पड़ रहा  है। इसी कार्यप्रणाली और ढोंग का ही परिणाम है कि भ्रष्टाचारी बड़ी चतुराई और धूर्तता से धूल झोंक कर बारे न्यारे करने में दबंगई के साथ लगे हुये हैं। ऐसा ही एक और मामला इस पिटकुल का फिर प्रकाश में आया है जिसमें इस तथाकथित सर्व विदित फुल संरक्षण प्राप्त दो-दो निदेशकों का गैरकानूनी चार्ज बाले इस प्रभारी एमडी का एक सप्ताह के अन्तराल में ही दर्शाये गये सीएम व सीएस को एक ही परियोजना के दो अलग-अलग प्रजेन्टेशन जिनमें अलग-अलग आँकडें दर्शाये हैं जो किस शातिराना अंदाज से आँखों में धूल झोंकने में सफल  भी हो गये।

स्वयं ही देख लीजिए. …

ज्ञात हो कि सीएम व सीएस को प्रजेन्टेशन में दिखाये गये आँकडों के खेल और हेरा फेरी में जो खेल खेला गया और मनमर्जी के कालम, विवरण से सीएम व सीएस को  जिस प्रकार गुमराह किया गया है वह भी अपने आपमें कमाल के हैं जिनपर मुख्यमंत्री धामी व मुख्य सचिव को गम्भीरता से एक्शन लेकर धूर्ततापूर्ण दुस्साहस के लिए सबक सिखाया जाना चाहिए!

ज्ञात हो कि सीमांत क्षेत्र पिथौरागढ़ की इन एक दूसरे से कनेक्टिड दोनों महत्वपूर्ण परियोजनाओं का कार्य कान्ट्रेक्ट एग्रीमेंट के अनुसार क्रमशः 65 करोड़ की लागत वाले बरम सबस्टेशन 6-7 माह में ही पूरा हो जाना चाहिए था, न होकर काफी समय बाद पूरा तो हुआ परंतु कमीशनिंग और टेस्टिंग का वाॅट आज भी जोह रहा है?

जानकारी के अनुसार इस प्रजेन्टेंशनों में कान्ट्रेक्ट लागत न दिखाकर साँठगाँठ कर खेल खेलने को बदनियती से डीपीआर कास्ट दिखा दी गयी तो कहीं कार्य कम्पलीट तो कहीं कुछ दिखाया गया। यही नहीं वर्तमान प्रभारी एमडी और ट्रिपल चार्ज वाले अधीक्षण अभियंता मुख्यालय दून में ही बैठ कर परियोजना का बेड़ा गर्क करने में तुझे हुये 65 /120 करोड़ की रकम डम्पिंग आफ फण्डिंग के खेल खेल रहे हैं। चूँकि ये एस ई महोदय आर्या साहब एमडी के अपने खास और  अनुकूल  नवरत्नों में से एक हैं इनके अलावा अन्य जो  अनुकूल नहीं और  नियमानुसार  कार्य करने वाले ईई, अधीक्षण अभियन्ता थे / हैं उन्हें दून मुख्यालय से शायद इसलिए हटा दिया गया क्योंकि वे एमडी का लाॅयल नहीं थे? इसी प्रकार  रास न आने वाले डीएफ का ऐन केन प्रकरेण स्तीफा स्वीकृत कराने में सफलता हासिल करली।

उल्लेखनीय है कि उक्त सबस्टेशन से कनैक्टिड होने वाली 12 करोड़ की लागत से अनुबंधित बरम जलजीवी (धोलीगंगा) ट्रांसमिशन लाईन 21 किमी के 39 टावॅर वाली लाईन का काम जनवरी 2017 में ही पूरा हो जाना चाहिए था, न होकर अब तक मात्र 16 या17 टाॅवर ही लग पाये हैं जो कार्य की प्रगति के कालम में प्रतिशत मे 42 प्रतिशत ही होते हैं किन्तु चतुर एमडी ने सीएस को 58 प्रतिशत और एक सप्ताह पश्चात सीएम धामी को हौचपौच करके 80प्रतिशत दिखा शाबाशी लेली।

ज्ञात हो यहाँ भी बारे न्यारे करने के लिए डीपीआर लागत 26 करोड़ दिखा दी साथ ही फारेस्ट क्लीयरेंस जैसे कारणों को दिखा चहेते कान्ट्रेक्टर डेकन स्कल को बलैक लिस्ट एवं परफारमेंस बीजी जब्त न करके एलडी के बिना ही एक्सटेंशन पर आँखें मूँद ली हैं। जबकि इसी NCLT चंडीगढ़ में 2017 में दिवालिया हो चुकी कम्पनी को उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ के राज्य में 13.64 करोड़ की पीबीजी जुलाई 201में जब्त कर सबक सिखाया जा चुका है।


सूत्रों की अगर यहाँ माने तो इस ड्रैकन स्कल और इसी एमडी की एसई व चीफ सीएण्डपी के समय से चली आ रही पुरानी गलबहियाँ के कारण ही लगभग 550 करोड़ की एडीबी वित्त पोषित कोबरा स्पेन काशीपुर श्रीनगर-रामपुरा ट्रांसमिशन लाईन की महत्वपूर्ण परियोजना खटाई में पड़ चुकी जिसका खामियाजा आज भी प्रदेश भुगत रहा है। परंतु एमडी साहब की दोस्ताना तो दोस्ताना है उसके लिए पिटकुल को बेचने में भी शायद इन्हें संकोच नहीं होगा तभी तो कोबरा स्पेन से बैक टू बैक कान्ट्रेक्ट लेने वाले इस ड्रैकन से सम्बंधित आर्वीट्रेशन के फैसले की जानकारी होते हुये इस पर फिर भी कोई एक्शन नहीं?

मजेदार तथ्य यह है कि उक्त बरम 220/33 केवी सबस्टेशन के निष्क्रिय पेड़ रहने के कारण जी 65 करोड़ का पिटकुल के फण्ड ब्लाक पड़ा है उसका नियामक आयोग से कैपिटलाईज्ड अनुमोदन नहीं हुआ जिस कारण इस रकम की फंडिग पर ब्याज प्रदेश की जनता व स्टैक होल्डर्स खामियाजे के रूप में भुगत रहे है। यही नहीं यूईआरसी से बारबार गलत बयानी करके तिथियाँ पर तिथियाँ बढ़वाई जा रही हैं। और अब मार्च 2023 का न पूरा होने वाला वादा किया गया है।

ज्ञात हो कि इस परियोजना के परबान न चढ़ने के बजह से जहाँ सीमांत क्षेत्र की जनता को विद्युत आपूर्ति व सुविधाएं से वंचित होना पड़ रहा है वहीं मिलने वाले लाभ से भी पिटकुल वंचित है।

यह भी यहाँ  गौरतलब है कि उक्त क्षेत्र की जल विद्युत परियोजनाओं से बिजली की निकासी विवशतावश व ट्रांसमिशन लाईन के अभाव में 33केवी के लाईन से हो रही है जिस कारण लाईन लास को भारी आर्थिक क्षति पिटकुल पहुँच रही है।

यदि इन ऊर्जा निगमों के यही हाल रखना उचित समझता है धामी शासन और एक एमडी ही पर्याप्त है और निदेशकों की आवश्यकता उचित नहीं तो इस पिटकुल के यूपीसीएल या यूपीसीएल को पिटकुल में मर्ज करना क्या उचित नहीं होगा?

उल्लेखनीय तो यहाँ यह सबसे अधिक है कि गले गले तक भ्रष्टाचार में डूबे एमडी अपने को गोदी मीडिया और भोंपू मीडिया व प्रिंट तथाकथित बड़े मीडिया घरानों से “कहीं भी ईंट, कहीं के रोड़ा” वाली कहावत के चलते हुये “आई आप पर तो टाली …पर” के अनुसार भ्रष्टाचारों से तंग निदेशक वित्त पर मनमाने ढंग  निराधार मढ़ने के प्रयास करने व उसके स्तीफे से लाभ उठाने की चाहत में किंचित मात्र भी दुरुपयोग करने में नहीं चूक रहे हैं और वैसा ही यह भोंपू मीडिया दायित्व से विमुख होकर घोटालों और भ्रष्टाचार की खबरों की दिशायें बदल कर भोले भाले पाठकों व दर्शकों को भटकाने टीआरपी बटोरने में लगा हुआ है जबकि इस मीडिया को चाहिए कि जनहित में सही तश्वीर दिखाये!

देखना यहाँ गौरतलब होगा कि प्रदेश के मुखिया और मुख्य सचिव इस पूरे प्रकरण पर क्या रुख अपनाते हैं? जनमानस में व्याप्त इस भ्रष्टाचारी और भ्रष्टाचार को संरक्षण के तथाकथित आरोप व कार्य कुशलता व कार्य प्रणाली पर लग रहे गम्भीर सवालिया निशान को मिटा पाने में कितने सफल होते हैं? क्या सीएम साहब को कुछ खास विभागों में ही दिखता है भ्रष्टाचार और इस पर नहीं,  जहाँ  होते हैं रोजाना करोडों के बारे न्यारे?

यूँ तो हमारे द्वारा विगत पाँच वर्षो से निरंतर आईएमपी ट्राँसफार्मर प्रकरण, ईशान साँठगाँठ और करोंडों के बारे न्यारे किये खेल, कान्टरेक्टरों प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष साझेदारी, आशीष ट्रांसपाॅवर घोटाला प्रकरण, ईशान (नैक्सो) ‘पदार्था पाताँजली परियोजना में फर्जीवाडा़ प्रकरण, चीफ होते हुये निदेशक से अभद्रता के मामले सहित महिला सहकर्मी से अभद्रता व दुराचार के दुस्साहस सम्बंधी मामले को खटाई में डलवाने व ट्रांसफर पोस्टिंग एवं नियुक्तियों का खेल सहित एक सचिव ऊर्जा की एसीआर सम्बन्धी आदेश को धत्ता बताते हुये दूसरी एसीएस ऊर्जा से दो दिन वाले त्रुप के पत्ते के आदेश करा वेताज बादशाह बनने का मामला, बिना आदेश दो दो निदेशकों का खुले आम दुरूपयोग, ईशान आर्वीट्रेशन का खेल, घोटालेबाजों के जमघट मुख्यालय में और नियमानुसार पिटकुल के वफादारों का अप्रत्यक्ष उत्पीड़न और दूर ट्रांसफर एवं काकस रूपी चौकडी़ के जमावड़ा आदि अनेकों मामलों को जनहित में प्रकाशित किया जाता रहा है परंतु रावत सरकारों से लेकर अब तक की सरकार व उनके शासन की कानों पर अभी तक कोई जूँ रेंगती दिखाई नहीं पड़ बल्कि यूँ कहा जाये कि ऊर्जा शासन में जो भी आया वह अंग्रेजी और मुगलिया काल की तरह लूट कर ही चलता बना और भ्रष्टाचारियों की दिन दूनी मौज बढ़ती रही? ठीक ऐसा ही हाल यूपीसीएल का भी हैं वहाँ के अनेकों गम्भीर प्रकरण इन्हीं एमडी साहब व काकस के उजागर किये जा चुके है? परंतु सब नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह गये!

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