रिश्वत न देने का परिणाम : एक ही कनेक्शन के तीन इस्टीमेट – पहले 49 हजार फिर 51 हजार और अब 28 हजार का!

वाह रे वाह, एमडी यूपीसीएल, वाह !

…यहाँ भी एमडी की है हिस्सेदारी?

तभी तो नहीं की कोई कार्यवाही?

रिश्वत मिलती तो यही इस्टीमेट होता दस हजार का

विभागीय केबिल न देकर 6हजार का मँगवाया बाजार से!
आखिर जा कहाँ का रही है ये करोडों की केबिल?
तीसरी बार रजिस्ट्रेशन पाँच माह में दिया कनैक्शन
नियामक आयोग को पूरे प्रदेश में ठेंगा! 

फिर भी धामी शासन का लाडला है ये एमडी 

(सुनील गुप्ता, ब्यूरोचीफ)

देहरादून। “जब खून मुँह के लग जाये तो नरभक्षी हो जाता है चीता” वाली इस कहावत को एमडी यूपीसीएल व उसके भ्रष्ट अधीनस्थ अधिकारी और कर्मचारी खुले आम अंजाम दे रहे हैं क्योंकि अब, जब एमडी तक हिस्सा जाना ही जाना है तो फिर लूटखसोट में कोताही क्यों? क्यों न दोनों हाथों से लूट मचाई जाये।

इन ऊर्जा नियमों में हो रहा भ्रष्टाचार व घोटालों से जनता त्राहित्राहि कर रही है किन्तु धामी सरकार के फिर भी लाडले बने हुये हैं ये एमडी! आखिर कोई तो बजह होगी आन महाशय पर चुप्पी की? 

ऐसा ही एक और मामला काली कमाई का प्रकाश में आया है जिससे यूपीसीएल में उपभोक्ताओं से लूटखसोट किये जाने और निगम की केबिल की बँदरबाँट के खुलासा स्वतः ही हो रहा है। मजेदार बात तो यह भी है कि उक्त प्रकरण एमडी महोदय के संज्ञान में एक प्रेस वार्ता के दौरान पन्द्रह दिनों पहले आ चुका है फिर भी किसी प्रकार की कार्यवाही का न होना उनकी हिस्सेदारी और शह पर मोहर भी लगाता है।

ज्ञात हो कि मुख्यालय की नाक के नीचे मोहनपुर डिवीजन के क्षेत्रअन्तर्गत गनेशपुर सबडिवीजन में एक उपभोक्ता ने अपने भवन निर्माण के लिए अस्थाई विद्युत कनैक्शन दिसम्बर 2021 में आवेदन किया था जिस पर काफी चक्कर कटवाने के बाद उक्त उपभोक्ता से 17 दिसम्बर को एक हजार रुपये नगद लेकर रजिस्ट्रेशन कर दिया गया और उपभोक्ता को लगभग 49 हजार रुपये का इस्टीमेट मैसेज भेज दिया गया। इतनी बडी़ रकम से घबडा़ई उपभोक्ता को रिश्वत के लिए अप्रत्यक्ष रूप से मजबूर करने के उद्देश्य से चक्कर लगतार लगवा लगवा परेशान करके इस्टीमेट की अवधि निकाल दी गयी और फिर उक्त पीड़ित उपभोक्ता की पत्नी से एक हजार रुपये की रकम फिर नगद लेकर 18 जनवरी 2022 के पुनः रजिस्ट्रेशन कराकर जो इस्टीमेट उसी भवन की भेजा गया वह 51 हजार 368 रुपये जमा कराये जाने का भेजा गया ताकि वह महिला स्वतः ही समझ जाये कि सब कुछ इन्हीं साहब के हाथ में है भले ही नियम कुछ भी  हो,  साहब चाहेंगे तो पडो़सी मकान जिस पर कनैक्शन लगा  हो से दूरी दिखा देंगे और नहीं चाहेंगे तो दूर लगे पोल के दूरी दिखा इस्टीमेट लम्बाचौडा़ बना देंगे क्योंकि  नियमों को तोड़ना मरोड़ना  भी इन्हें भलीभाँति आता है। किन्तु पहाड़ की उक्त सीधी साधी महिला ने रिश्वतखोरी का विरोध किया तब उसके दूसरे भी एक हजार रुपये मिट्टी में इन्हीं बिजली विभाग के बेदर्द कर्मचारियों और अधिकारियों ने मिलवा दिए।

मामला यहीं तक नहीं रुका जब परेशान उपभोक्ता ने कनैक्शन न दिए जाने की शिकायत करने को कहा तब भी ये धूर्त भ्रष्ट वेखौफ नहीं चूके और उससे स्थाई कनैक्शन आवेदन करने को कहा तथा उसे तीसरी बार में पाँच माह पश्चात 28 हजार 6सौ रुपये जमा कराने का मैसेज भेज दिया। मरता क्या न करता की कहावत के अनुसार परेशान उपभोक्ता की पत्नी ने 28600/- की रकम उसी दिन 23 अप्रैल को जमा करा दी। तब अगले दिन भ्रष्ट अधिकारी व लाईनमैन बिना केबिल के ही  उसके घर स्थित बडो़वाला, सुमेर कालोनी स्वयं पहुँच गये और कहा कि यदि कनैक्शन लगवाना है तो 180 मीटर केबिल बाजार से ले आओ। बेचारी परेशान हो चुकी महिला को क्या पता था कि वह जो 6120/- का केबिल उसे मँगवाना पड़ रहा है उसकी जिम्मेदारी व दायित्व यूपीसीएल का ही है।

बड़ी मुश्किल तमाम उसके घर बिजली का कनैक्शन हो पाया। जबकि यदि उस पूरे क्षेत्र और प्रदेश भर में लगे  अथवा लग रहे नये घरेलू उपभोक्ताओं के इस्टीमेटों की गहनता से जाँच कराई जाये तो इस भ्रष्टाचारी युग में जितना शोषण व उत्पीड़न नये उपभोक्ताओं का हो रहा है उससे कहीं अधिक मनचाहे तिकड़मी इस्टीमेटों और केबिल के खेल से यूपीसीएल का हो रहा है, खुलासा हो सकता है। यही नहीं यूपीसीएल द्वारा अस्थाई कनैक्शन में ली जाने वाली इतनी अधिक काली नियम जानबूझ अव्यवहारिक बना नियामक आयोग से ठप्पा लगता लिया गया। यहाँ प्रश्न यह नहीं कि अस्थाई कनैक्शन में जमा कराई जाने वाली रकम की अधिकांशतः वापसी को दी जाती है। साल इस बात का है इतनी  अधिक रकम ईमानदार उपभोक्ता लायेगा कहाँ से?  अथवा ये सब  फिर गेटिंग सैटिंग के खेल के लिए ही ऐसा बनाया गया है?

ज्ञात हो कि जब इस सम्बंध में सम्बंधित जेइ, एसडीओ और अधिशासी अभियंता से जानकारी चाही गयी तो उन सभी का रवैया और जबाव ढुलमुल ही मिला। सभी एक दूसरे पर टालमटोल करते नजर आये और अब उक्त उपभोक्ता को घडि़याली आँसू दिखाकर बहलाते फुसलाते परेशान करते नजर आ रहे हैं और उससे ये लिखवाने का प्रयास करने रहे हैं कि उपभोक्ता स्वयं लिख के देदे कि उसे कनैक्शन की जल्दी है वह स्वेच्छा से केबिल लाकर दे रही है। आदि आदि! 

क्या यही है यूपीसीएल का रवैया? क्या एमडी की शह या सहभागिता नहीं है? क्या यही है एमडी यूपीसीएल का नियामक आयोग में जनसुनवाई के दौरान कथनी और करनी का अन्तर?

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि यदि उपभोक्ता रिश्वत में दस पन्हद्रह हजार भेंट चढा देता तो यही इस्टीमेट मात्र दस से पन्द्रह हजार रुपये का ही बनता तब न कोई नियम दिखाया जाता और न ही कोई कायदा, केवल फायदा ही फायदा होता?

यदि नहीं तो पन्द्रह दिनों से क्यों नहीं की कोई कार्यवाही अपने इस सिपहसालारों पर? आखिर कहाँ का रही उपभोक्ताओं के नाम की करोडों की केबिल? क्या यूपीसीएल वापस करायेगा उपभोक्ता से वसूली गयी ज्यादा रकम और केबिल की कीमत?

जब ये हाल राजधानी देहरादून में है तो पूरे प्रदेश के उपभोक्ताओं और नये आवेदकों का क्या हाल होगा? नये कनैक्शनों से होने वाली काली कमाई  पर क्या लगेगा विराम?

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