खुलासा : कूलिंग फैन लगाकर ठंडे रखे गये अण्डर कैपिसिटी के ये पाॅवर ट्राँसफार्मर!

पिटकुल – आईएमपी घोटाला प्रकरण में एक और नया खुलासा!
कूलिंग सिस्टम पर भी लाखों रुपये चुपचाप खर्च करा डाले इस कॉकस ने

जो आज एमडी और डीपी बने बैठे हैं वे ही रहे थे मुख्य करामाती 

(सुनील गुप्ता, ब्यूरो चीफ)

देहरादून। पिटकुल के द्वारा तब एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत लगभग सवा सौ करोड़ के आईएमपी से खरीदे गये अधिकांश पावर ट्रांसफार्मर या तो अण्डर कैपिसिटी के थे या निम्न गुणवत्ता के मानकों के विरुद्ध थे, जब वर्तमान एमडी पिटकुल एवं यूपीसीएल तब चीफ सीएण्डपी व क्यू एण्ड क्यूसी रहे थे। एक सप्ताह में ही एग्रीमेंट से लेकर सप्लाई तक की सभी औपचारिकताँए कैसे पूरी हो गयीं इस पूरे खेल में वर्तमान एमडी के साथ साथ यूपीसीएल के वर्तमान निदेशक (परियोजना) जो उस समय अधीक्षण अभियन्ता (सीएण्डपी) पिटकुल के पद पर सुशोभित थे के द्वारा “ट्रांसफार्मर मिला नहीं बैंक गारंटी वापस कर दी गयी” सहित अनेकों गम्भीर अनियमितताओं में संलिप्त पाये गये थे और तत्कालीन एमडी के द्वारा इन दोनों जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारियों के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही भी की गयी थी बाद में कुल 12 लोंगो पर गाज भी गिरी थी किन्तु असल दोषी और गुनहगार आज धामी सरकार के संरक्षण में मौज लेते हुये ठेंगा दिखाते हुये मानो यह कह रहे हों कि चाँदी का जूता हो तो अधिकांश चाँद नरम हो जाती हैं।

2018 में उजागर किये कुछ तथ्य…

स्मरण हो कि इस पूरे  प्रकरण पर न ही कभी उत्तराखंड शासन गम्भीर नजर आया और न ही आज तक किसी भी जाँच कमेटी ने पूरी जाँच करके निष्कर्ष निकाल के दिया। अनेकों जाँच कमेटियाँ व जाँच अधिकारी आये और समय व धन का वर्बादी करके मामले को उलझाते ही चले गये।  इस प्रकार की कार्यप्रणाली के पीछे, भ्रष्टाचारियों के सबक सिखाने की इच्छा शक्ति का ही अभाव अब तक देखने को मिला हैवरना शायद दोषी और संलिप्त सींकों के पीछे होते यूल ही एमडी और डीपी न बने बैठे होते!

इन्हीं ट्राँसफार्मरों में से खरीदा गया एक 80 एमवीए पावर ट्रांसफार्मर ऊर्जीकृत करते ही झाझरा उपकेन्द्र पर धाराशायी भी हो गया था। उक्त ट्रांसफार्मर भी अन्य ट्रांसफार्मरों के तरह  तय क्षमता का लोड भी सहन नहीं कर पाया था।
ज्ञात हो कि तब इस घोटाले की जांच की मांग तमाम संगठनों द्वारा की जाती रही तथा हम सहित तमाम मीडिया व समाचार पत्रों के द्वारा इस महाघोटाले के विभिन्न पहुलुओं को समय समय पर उजागर भी किया जाता रहा। वहीं ऊर्जा विभाग के कुछ उच्चाधिकारियों व राजनेताओं के संरक्षण इसे दबाने की कोशिशें भी काफी की गईं।

पिटकुल में ट्रांसफार्मर आए बिना ही अफसरों ने बैंक गारंटी लौटा दी। इससे कंपनी को ब्लैक लिस्ट करने की प्रक्रिया में दिक्कत आई। ट्रांसफार्मर खरीद घोटाले में पिटकुल के अफसरों, इंजीनियरों ने कई स्तर पर घपलेबाजी भी की थी। इस मामले में तब भी बहुत सारे सवालिया निशान लगे थे, लेकिन न तो पिटकुल और न ही ऊर्जा मंत्रालय ने इसकी कम्पलीट निष्कर्ष वाली प्रभावशाली समयबद्ध जांच कराना उचित समझा और न ही कोई कार्यवाही करना। जबकि समय समय पर इसका रायता अवश्य किसी न किसी रूप में कॉकस के द्वारा फैलाया जाता रहा जो आज भी जारी है।

ज्ञात हो कि झाझरा सब स्टेशन में लगे 80 एमवीए के ट्रांसफार्मर के दो बार खराब हो जाने से पूरी खरीद प्रक्रिया ही सवालों के घेरे में आई थी।

यह भी तथ्य उजागर हुआ था कि पिटकुल के इंजीनियरों, अफसरों ने विभागीय कर्तव्यों का सही तरीके से निर्वहन नहीं किया। इसी तरह, बैंक गारंटी लौटाने में भी अफसरों की भूमिका संदिग्ध नजर आ रही थी। यही नहीं घर बैठे ही इस ट्रांसफार्मरों के स्टेज इंसपेक्शन भी मनमरजी  से कर लिए गये थे।
दरअसल, पहली बार मई 2016 में जब ट्रांसफार्मर खराब हुआ तो इसे ठीक करने के लिए कम्पनी को भेजा गया था।
यही नहीं कि केवल झाझरा सब स्टेशन पर आया एक ट्राँसफार्मर खराब क्वालिटी का रहा हो। रिषीकेश, झाझरा सहित अन्य उपकेन्द्रों पर आपूर्ति किये गये अधिकांश ट्राँसफार्मर भी मानकों के विपरीत थे तथा कुछ तो अण्डर कैपिसिटी के भी थे जो निर्धारित क्षमता का लोड डालते ही गरम हो जाते थे। इस बात का भी पुख्ता प्रमाण अब प्राप्त हुआ है जिसे ये शातिर घोटालेबाज व जाँच अधिकारी बड़ी चालाकी से छिपाये हुये थे या फिर कॉकस के द्वारा जानबूझकर इस दुष्कृत्य पर दौराने जाँच पर्दा डाले रखा गया। यह पर्दा इस प्रकार अपने आपमें ही ठोस प्रमाण है कि कम क्षमता के ट्राँसफार्मर साजिश के तहत आईएमपी से साँठगाँठ करके महँगी कीमत पर आधिक क्षमता के दर्शाकर खरीदे गये और पिटकुल को जानबूझकर चूना लगा बारे न्यारे किये गये। तभी तो पोल न खुले इस डर से इन अण्डर कैपिसिटी के ट्रांसफार्मरों को ठण्डा रखने हेतु कूलिंग सिस्टम लगाने में लाखों रुपये पिटकुल के ही खर्च करके इन वेदर्द अधिकारियों द्वारा लगवाये गये जो नियम विरुद्ध था। क्या इस प्रकार इन पावर ट्राँसफार्मरों पर कूलिंग सिस्टम लगाये जाने की गम्भीर अनियमितता व धोखा देकर अपराध को छिपाने पर कोई कदम धामी सरकार व उनका ऊर्जा मंत्रालय उठायेगा?

नमूने के तौर पर देखिए 2015 में झाझरा के ट्राँसफार्मर पर लगाये गये कूलिंग अरेजमेंट के प्रमाण जबकि अन्य जगहों पर लगे  ट्रांसफार्मरों पर भी कूलिंग अरेजमेंट में धुत के वरबादी के गयी …….

गौरतलब बात तो यहाँ यह देखने के लायक है जो भाजपा नेता उस समय पानी पी पी कर उस समय की कांग्रेस सरकार को कोस रहे थे आज वे ही भाजपाई नेता सत्तासीन होते ही चुप ही नहीं हो गये बल्कि उन्हीं मुख्य आरोपियों को गले लगाये एमडी और डीपी का मुकुट पहना कर गोद में विठाये हुये हैं। और बजाए इसके कि इन दोनों के विरुद्ध धामी सरकार दण्डात्मक कार्यवाही करे, के स्थान पर मक्खन मलाई खिलाए जा रहे है और अब तो ऐसा दिखाई पड़ रहा है कि धामी सरकार ने इन्हें अभय दान दे दिया है! तभी तो ये वखौफ नित नये नये बड़े से बड़े कारनामों और घोटालों को अंजाम देते चले आ रहे हैं। क्या धामी सरकार इस पूरे प्रकरण को गम्भीरतापूर्वक लेगी? और यूपीसीएल,  पिटकुल सहित यूजेवीएन एल व उरेडा को घोटालेबाजों से मुक्ति भी दिलायेगी?  या फिर  …..

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