जनाब: गूँगी बहरी सरकार है ये उत्तराखंड की! तभी तो चेयरमैन व सचिव के भी कानों में भी पड़ा है ऊर्जा का तेल!

ये मुख्यमंत्री का ऊर्जा विभाग है!
यहाँ घोटालेबाज और भ्रष्टाचारी ही फलते फूलते हैं!
अपनी कुर्सी भी तो बचानी है!
जहाँ हो एमडी ही स्वयं संलिंप्त तो कैसे होगी औरों पर कार्यवाही?
55 लाख का गबन करने वाले अधिशासी अभियंता राकेश पर जब नहीं हुई पाँच साल में FIR तो इस दोषी ओएस प्रदीप पर कैसे गिरेगी गाज?
आरोपी को नियम विरूद्ध प्रमोशन देने वाले सूरदास चीफ गढ़वाल व विभागीय चयन समिति के विरूद्ध कब होगी कार्यवाही?
सूचना के अधिकार अधिनियम के भी उडा़ते है ये धज्जियाँ
भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज दबाने के लिए, फिर हजारों रुपये वर्बाद कर, लिया निरर्थक ही कोर्ट का सहारा
(ब्यूरो चीफ सुनील गुप्ता)

देहरादून। ऊर्जा विभाग के यूपीसीएल और पिटकुल में एक के बाद एक नया काला कारनामा नित्य उजागर हो रहा है और मीडिया की सुर्खियाँ बन रहा है परंतु इस सबसे न ही सीएम धामी के कानों पर जूँ रेंग रही और न ही उनके सिपहसालार सचिव और मुख्य सचिव पर। जिसका ही परिणाम है कि भ्रष्टाचार और घोटालों में कण्ठ तक डूबे एमडी व उनके सहयोगी अधिकारी मलाई खा खा कर यूपीसीएल और पिटकुल के नेस्तनाबूद करने पर जुटे हुये हैं।

पारदर्शिता का ढिंढोरा पीटने वाली इस सरकार के राज्य में सूचना के अधिकार में भी सही जानकारी उपलब्ध नहीं कराई जाती है। आरटीआई में दी गयी जानकारी को खुद ही नहीं मानते और बड़ी आसानी से नजर अंदाज कर देते हैं। ठीक यही, यहाँ यूपीसीएल में भी हुआ और समस्त तथ्यों व जानकारी से भिज्ञ होते हुये चयनसमिति द्वारा घोटालेबाज आरोपी को धड़ल़्ले से पदोन्नति देकर बजाये लिफाफा बंद करने के, प्रदीप कंसल को प्रमोशन के साथ-साथ तैनाती भी देदी गयी। मजेदार बात तो यहाँ यह भी है कि चयन समिति सहित सभी भलीभाँति पूरे प्रकरण के रिकार्डिड तथ्यों से पूर्णतया अवगत थे और जानते थे।

ज्ञात हो कि यह कोई पहला प्रकरण नहीं है जिसकी यूपीसीएल के भीतर और बाहर सियासी गलियारों में चर्चा न हुई हो और मीडिया का सुर्खियाँ न बनी हो। इससे पहले भी करीब पाँच छः वर्ष पहले रुड़की में तैनात रहे अधिशासी अभियन्ता राकेश कुमार द्वारा यूपीसीएल के लगभग पचास लाख रुपये की रकम की हेराफेरी कर गबन किया जा चुका है और उक्त अभियन्ता उच्चस्तरीय जाँच में दोषी भी पाया जो चुका था, परन्तु आजकल तक उक्त दोषी अभियंता के विरुद्ध न ही कोई कार्यवाही प्रदर्शित हुई और न ही गबन किये जाने की कोई FIR यूपीसीएल द्वारा कराई गयी। उक्त गबनकर्ता अभियन्ता आज भी अपनी साँठगाँठ की दुहाई दे रहा है। ऐसे में क्या वर्तमान एमडी से कोई अपेक्षा की जानी चाहिए जो स्वयं ही इन रंगों में रंगा हो?

 

उक्त अधिकारी प्रदीप कंसल को प्रमोशन देने के लिए यूपीसीएल प्रबंधन ने जिस तरह से नियमों को ताक पर रखा है वह अपने आप में ही अत्यंत गम्भीर अनियमितता है।
इस सबके पीछे वजह कुछ और नहीं प्रदेश की गूँगी बहरी वर्तमान सरकार व कानों में ऊर्जा का तेल डाले शासन में बैठी चेयरमैन ऊर्जा व सचिव ऊर्जा हैं जो या तो अपंग और असहाय हो गये हैं या फिर वेसी ही किसी ऊर्जा का तेल उनके कानों में पड़ा है जिसकी आम चर्चा है। ज्ञात हो कि उक्त मंत्रालय खुद मुख्यमंत्री के ही पास है।

क्या सूचना के अधिकार में दी गयी ये सारी जानकारियाँ गलत हैं या फिर यूपीसीएल के अधिकारी इतने भ्रष्ट और दबंग व बेखौफ हो गये हैं कि अपने जगजाहिर भ्रष्ट एमडी का अनुसरण करने पर लगे हुये हैं।


यहाँ अगर आरटीआई में प्राप्त दस्तावेजों पर नजर डाले तो कार्यालय सहायक प्रदीप कंसल पर निगम के पैसे की बंदरबांट करने के लिए फर्जीवाडे़ के अंजाम देकर पत्नी व परिजनों के नाम से फर्जी तरीके से फर्म बनाकर यूपीसीएल की भारी भरकम रकम के गबन का आरोप है। उक्त आरोप यूपीसीएल की सतर्कता अधिकारी की जाँच में सही भी पाये जा चुके हैं और लगभग दस लाख का गबन प्रथम दृष्टया सिद्ध भी हो चुका है जबकि यह मामला लगभग तीस लाख तक की हेराफेरी के बताया जा रहा है। उक्त प्रकरण की जांच प्रबंधन स्तर से होने के बाद काफी हद तक आरोप सही पाए गए फिर भी कोई दण्डात्मक कार्यवाही नहीं की गयी और उक्त दोषी को बचाया जाता रहा। उक्त मामले पर वर्तमान एमडी भी चुप्पी साधे बैठे हैं क्योंकि उन्हें तो ऐसे ही घोटालेबाज एक्सपर्ट की फौज चाहिए!

उल्लेखनीय यह है कि निगम में जांच जारी होने के बाद भी प्रदीप कंसल को विभाग ने पदोन्नति पत्र कैसे जारी कर दिया है? साफ है कि प्रदीप कंसल के पीछे निगम के ही कुछ वरिष्ठ अधिकारी हैं, जो नही चाहते की जांच पूरी होकर कंसल पर कोई कार्यवाही हो।

ज्ञात हो कि प्रदेश में ऊर्जा विभाग की कमान खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के हाथ में है, जो लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही करने के दावे तो अवश्य कर रहे हैं परन्तु ऊर्जा विभाग में एक के बाद एक कई मामले सरकार के सामने उजागर हुये है, और अधिकांश में तो कई कई बार जाँचें भी हो चुकी हैं और कुछ में यह जाँच पर जाँच का खेल निरंतर जारी है। फलस्वरूप ये भ्रष्टाचारी व घोटालेबाज अधिकारी मजे से यूपीसीएल व पिटकुल में बैठकर अपने कारनामे दिखाते हुए सरकार को मुंह चिढ़ाने का काम कर रहे है।

सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह देखने को कल मिली जब एमडी के विरुद्ध भ्रष्टाचार व घोटालों को लेकर एक सामाजिक संगठन द्वारा एक सप्ताह पूर्व ही 9 मई के धरना प्रदर्शन की चेतावनी दे दी गयी थी। एमडी के घबराहट ने चोर की दाढ़ी में तिनका बाली कहावत को चरितार्थ करते हुये स्वतः ही मान लिया कि वे संलिप्त हैं और यूपीसीएल को वर्बादी से नेस्ताबूद के ओर लेजाने में किंचित मात्र भी पीछे नहीं रहेंगे तभी तो 9 मई को दिन के दिन सिविल न्यायालय का दरवाजा खटखटाने पहुँच गये और फिर हजारों रुपये इस अदालती कार्यवाही में निगम के खर्च कराकर तब निषेधाज्ञा के आदेश लाये जब धरना व प्रदर्शन हो भी चुका था। मजेदार बात यहाँ यह भी है उक्त निरर्थक आदेश आज तक विपक्षीगणों के नहीं मिला।

अब देखना यहाँ गौरतलब होगा कि इस प्रदेश की गूँगी बहरी सरकार व उनका शासन इन भ्रष्टाचारियों पर कुछ प्रभावी कार्यवाही करता है या फिर ऐसे ही आँखें बंद किये मूकदर्शक बना रहेगा और सीएम धामी मन्दिर मन्दिर मथ्था टेकते हुये भगवान भरोसे प्रदेश को छोड़कर चुनाव में लगे रहेंगे!

 

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