राजधानी दून : अवैध और अनाधिकृत कोविड हास्पिटल के डा.केतन आनंद द्वारा पत्रकार व शिकायतकर्ता को धमकी, कार्यवाही की माँग!

मैं भी इन्हें धरती का भगवान समझता था परन्तु ये तो यमराज ही नहीं जल्लाद निकले!

उपचार घर पर करो, नहीं तो डेडबाडी भी नहीं मिलेगी …!

– देश में हेल्थ इमरजेंसी क्यों नहीं?

त्राहिमाम, त्राहिमाम की चीत्कार पर गूँगी बहरी सरकार क्या लाचार है ?

(आँखों देखा और भुगती हुई सच्ची घटना – सुनील गुप्ता, ब्यूरो चीफ)

अवैध और अनाधिकृत हास्पिटल के डा.केतन आनंद द्वारा पत्रकार व शिकायतकर्ता को धमकी, कार्यवाही व FIR की माँग!

देहरादून।
आज शाम 4:45 बजे राजधानी दून में नियम विरुद्ध अवैध रूप से कोविड मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे नैशविलारोड स्थित मार्क हेल्थकेयर हास्पिटल के डा.केतन आनंद द्वारा शिकायतकर्ता व पत्रकार को फोन पर दी गयी धमकी, सुनिए आडियो ….

कानून उसकी जेब में हैं : डा. केतन

 

ज्ञात हुआ है कि आज जिला प्रशासन व उप मुख्य चिकित्साधिकारी एवं पुलिस की संयुक्त टीम द्वारा उक्त अस्पताल पर छापे की कार्यवाही की गयी थी शिकायत सही पाई गयी तथा उक्त अस्पताल अवैध रूप से चलते हुये पाया गया। विस्तृत कार्यवाही की प्रतीक्षा है!

सूत्रों की अगर मानें तो उक्त हास्पिटल अभी भी धडल्ले से कोविड मरीजों की जान से खिलवाड़ करना जारी किये हुये है। उप मुख्य चिकित्साधिकारी डा सुधीर पाण्डे अपने आपको वेवश बता पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं। देखना यहाँ गौरतलव होगा की टीम के द्वारा इस अनाधिकृत व अवैध कोविध हास्पिटल के विरुद्ध क्या क्या कार्यवाही अंजाम में लाई जाती हैं या फिर यूँ ही इस गम्भीर प्रकरण में भी लीपापोती कर गैर कानूनी दुष्कृत्य पर पर्दा डालने और कोरोना महामारी जैसी बीमारी से त्रस्त मरीजों के जीवन से खिलवाड़ होने देंगे और इन जल्लाद रूपी तथाकथित डाक्टरों द्वारा लूटखसोट जारी रखने को शह दी जायेगी?

——-0——-पढिये विस्तार से…. जारी ——-0——-

देहरादून। ये कोई काल्पनिक या कपोल कल्पित कहानी या किस्सा नहीं बल्कि वह सच्ची भुगती और आँखों देखी घटना है जिसने मुझे भी झकझोर दिया क्योंकि मेरे मन में जो आदर और विश्वास इन धरती के भगवानों के प्रति था वह तब टूटा जब मैंने खुद देखा और भुगता तथा अपने को सदा सदा के लिए एक लाचार और लचर सिस्टम के कारण खो दिया। मैं जिन्हें जीवन रक्षक और संजीवनी देकर जान बचाने वाले भगवान समझता था वे सबके सब यमदूत से भी बदतर जालिम और जल्लाद निकले !

…अरे जब मेरे साथ ऐसा हुआ जिसने डीएम से सीएम तक का दरवाजा खटखटा दिया और एक बेड व उपचार की गुहार लगाई। परिणाम स्वरूप सीएम के कहने पर राजधानी का प्रख्यात और तथाकथित बडे़ सुपर स्पेशियल्टी सुविधायुक्त कैलाश हास्पिटल में भी 02 मई और 03 मई को वही भयावह मंजर और आलम देखा जिसे देखकर घृणा आती है।

ऐसे में उन हजारों लाँखों असहाय, बेवस और लाचार आम लोंगो का क्या हाल होगा और क्या वे भी ऐसे ही अपनों को इन जल्लादों और कसाईयों के हाथों तड़पता और मरता देख नहीं रहे होंगे?

कभी मैक्स तो कभी विवेकानंद हास्पिटल तो कभी दून अस्पताल, कैलाश हास्पिटल और तो कभी कहीं तो कहीं दर-दर भटकने और प्रयासों के उपरांत मरता क्या न करता की कहावत के अनुसार एक लालसा और विश्वास के साथ कि यहाँ भी भगवान होंगे। अपने कोरोना संक्रमित व आक्सीजन (86) की कमी से त्रस्त फौरी चिकित्सीय सहायतार्थ उसे भर्ती कराया।

ज्ञात हो कि विगत 28 अप्रैल को मेरे घनिष्ठ परिजन की जब हालत बिगडी और उसे तुरंत उपचारार्थ राजधानी दून के मध्य स्थित नैशविलारोड पर मार्क हेल्थ केयर हास्पिटल ले गया और डा. केतन आनंद के कहने पर कोरोना संक्रमित मरीज को भर्ती कराया।
क्योंकि वहाँ पहले से ही भर्ती दर्जनों कोविड संक्रमित मरीजों का इलाज चल रहा था और डाक्टर केतन आनंद बेड होते हुये रकम ऐंठने के लिए नौटंकी कर रहे तथा पेपरों पर परिजनों से साईन कर देने की शर्त जल्दी व डराकर रखते जा रहे थे यही नहीं फटाफट कैश जमा करो वरना मरीज लेजाओ की भी धमकी दिए जा रहे जबकि उक्त मरीज अशोक कुमार थापा को कैशलेश हेल्थ इंश्योरेंश की सुविधा भी थी, पर डाक्टर नहीं माना और उसने मजबूरी का लाभ उठाते हुये फिलहाल पच्चीस हजार पहले जमा करवा लिए तब एक छोटा सा साधारण केविन में बेड और आक्सीजन लगा उपचार शुरू किया। लगभग 35हजार प्रतिदिन का खर्चा बता इलाज करने वाले इन डा. केतन आनंद और उनके हास्पिटल का व्यवहार भी मरीजों के तीमारदारों और परिजनों से बजाए सहज और सरल के रूढ़ और अशोभनीय व अनुचित देखा गया। ऊपर से यह कहकर प्रभाव में लेना और रुआब जमाना कि वे मैक्स हास्पिटल के ही हैं। यह कहकर 2 मई तक मरीज को रखे रहे और भारीभरकम रकम अर्थात सवालाख रुपये ऐंठ लिए तथा 2 मई की शाम को कहा कि इन्हें किसी आईसीयू और वेंटीलेटर वाले हास्पिटल ले जाओ, इनका निमोनिया फैल गया है। सबाल यह कि जब मरीज के परिजन हाल पूँछ रहे और डिस्चार्ज को कह रहे तब उसे यह कहकर रोके रखना कि वैसे तो ठीक है लेकिन अभी आव्जर्वेशन में रखेंगें और रकम ऐंठते रहे तथा मरीज की जान से खिलवाड़ करते रहना कहाँ तक उचित है? ऐसे धनलोलुप व स्वार्थी चिकित्क द्वारा हासिल की गयी डिग्रियाँ व उसकी योग्यता और अनुभव पर भी प्रश्न चिन्ह लगाते हैं जिन पर भी गम्भीर जाँच होना चाहिए तथा उक्त चिकित्सक द्वारा किया गया पूरा ईलाज और प्रक्रिया का भी एक्सपर्ट द्वारा परीक्षण भी कराया जाना चाहिए !

डाक्टर केतन आनंद के कहने पर फिर ब्याकुल परिजनों की चीत्कार पर सरकारी दावों और घोषणाओं को खोखला व झूठा पाते हुये जब दून के डीएम डा.आशीष कुमार श्रीवास्तव, आईएएस से एक आईसीयू और वेंटीलेटरयुक्त बेड किसी हास्पिटल में दिलाये जाने की गुहार 2 मई को करीव शाम साढे़ चार बजे लगाई और आश्वासन की प्रतीक्षा से निराशा के उपरांत प्रदेश के मुखिया (सीएम) तीरथ सिंह रावत को फोन करके मदद माँगी गयी तो भला हो सीएम साहब का कि उनके कहने पर उनके स्टाफ आफीसर विक्रम जी के कहने पर कैलाश हास्पिटल में एक बेड मिला जहाँ मरीज को व मुश्किल तमाम शिफ्ट करा परिजनों ने शुक्रिया करते हुये राहत की साँस ली।

दास्ताने कैलाश हास्पिटल …..

घटनाक्रम के अनुसार परिजनों द्वारा आशा व विश्वाश के साथ 2मई की शाम को ही कैलाश हास्पिटल में एडमिट करा दिया गयाजहाँ उसे इमरजेंसी बार्ड में रखकर ईलाज शुरू कर दिया गया।

अगले दिन 3 मई की सुबह पता चला कि उनके मरीज को आईसीयू में बेड नम्बर 22 पर शिफ्ट कर दिया गया है।
तत्पश्चात 11 से 12 बजे के दौरान जब मरीज से मिला और उससे बात की तथा देखा कि उसका आक्सीजन लेविल 96 पर है, राहत महसूस की और आईसीयू बार्ड में उपस्थित डा. भूपेन्द्र से स्थित जानी तथा उन्हें बताया कि मरीज दो दिन से मल निष्कासन न होने से पीढा़ बता रहा है देखिए कृपया, तथा साथ ही पहले से चल रही होम्योपैथिक दवा साथ ही चलाये रखने का अनुरोध भी किया तो वहाँ उपस्थित नर्सिंग स्टाफ ने होम्योपैथी दवा निरंतर जारी रखने व देते रहने में असमर्थता ब्यक्त की। जिस पर हास्पिटल के नोडल आफीसर व सीनियर डाक्टर अतीश सिन्हा से पुनः अनुरोध व शिकायत की गयी। डा. सिन्हा और अस्पताल के डाईरेक्टर पवन शर्मा के इस आश्वासन पर कि वे निर्देश दे रहें हैं और होम्योपैथी की इस दवा पर उन्हें भी कोई आपत्ति नहीं है। परंतु अफसोस कि उसे उसकी होम्योपैथी की दवा जानबूझ कर नहीं दी गयी।

अभी अस्पताल से घर आकर बैठे ही थे कि करीब साढे़ चार बजे फोन पर डा. भूपेन्द्र ने तुरंत अस्पताल पहुँचने को कहा और बताया कि मरीज का हाल ठीक नहीं है इन्हें वेंटीलेटर लगाना पडेगा। परिजन भाग कर हास्पिटल पहुँचा तो उसे बताया कि 5बजकर 10 मिनट पर उनके मरीज ने अंतिम साँस ली और He is no more की खबर से व्यथित परिजन जब दौडे़ दौडे़ हास्पिटल पहुँचे और बाडी माँगी तो कहा कि पहले बिल क्लियर करो। बिल व फाईल एवं डेथ समरी बनाने में ही दो घंटे लगा दिए तथा कैशलेश हेल्थ इंश्योर्ड फाईल के उपरांत भी हुतात्मा की बाडी नहीं दी परिणामस्वरूप रायपुर कोविड शवदाह गृह का समय बीत गया और बाडी वहीं मौरचरी में रखवानी पडी़। अगले दिन 4 मई को हास्पिटल की फिर वही नौटंकी कि पहले बिल क्लियर करो और भुगतान नगद जमा कराओ तब डेडबाडी मिलेगी जबकि पता चला कि स्टार हेल्थ इंश्यैश्योरेंश से 2 व 3 मई अंतिम श्वाश तक का कुल भुगतान 3 मई को ही हास्पिटल को प्राप्त हो चुका है। पूछने पर बताया कि डिडक्शन का बकाया भुगतान सत्रह हजार करीब का बकाया है पहले वह करो और फिर डेडबाडी ले जाओ। डेडबाडी के मौरचरी में रखे जाने का भी एक दिन का साढे़ सात सौ रुपया नगद जमा करा लिया गया तथा हास्पिटल के डाईरेक्टर पवन शर्मा के कहने पर डेडबाडी मिली जिसका अंतिम संस्कार रायपुर कोविड शवदाह गृह में किया गया।
उल्लेखनीय तथ्य तो यह भी हैं कि दो-दो हास्पिटल्स और उनमें ईलाज के नाम पर केवल और केवल भारी भरकम लूटखसोट के अतिरिक्त जो आपत्तिजनक मंजर भी देखने को मिला वह भी कुछ कम गम्भीर नहीं हैं ऐसे मंजर को देख कर स्वतः ही साबित हो गया कि न ही कोई कोरोना संक्रमण और और न ही इसका कोई इलाज है तो फिर यह सब निजी मँहगें अस्पतालों और शासन व प्रशासन में बैठे आलाअफसरों और सरकारों की नौटंकी क्यों ? क्या इस जनता की जान की यही है कीमत कि एक मुर्गा मुर्गी की तरह जो चाहे जब चाहे हलाल कर दे और उसके जीवन से खिलवाड़ करे! यही क्या दुनिया का सबसे बडा़ प्रजातंत्र और जनतंत्र है जहाँ जनता के जीवन का कोई मूल्य नहीं और न ही उसके जीवन को सुरक्षा प्रदान करना सरकार का दायित्व ? यही हैं वे धरती के दूसरे भगवान कहलाने वाले डाक्टर जो जल्लादों और कसाईयों की तरह एक असहाय मरीज के जीवन से खिलवाड़ करने में किंचित मात्र भी संकोच नहीं करते और न ही अपनी उस सौगंध व ड्यूटी की परवाह करते जो उन्होंने एक चिकित्सक बनने के समय खाई थी? क्या इसी लिए हैं ये बडे़बडे़ आलीशान फाईव स्टार और ध्री स्टार फैसीलिटी वाले सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल जिन पर न कोई नियम और न कोई कानून ? परेशान व त्रस्त जनता व मरीजों के दोहन और उत्पीड़न व जान से खिलवाड़ के लिए हैं!

बस सबके सब इन अस्केपतालों और चिकित्सा माफियाओं के आगे नतमस्तक क्यों? क्यों वेबस हैं हमारा संविधान और संवैधानिक व्यवस्था ? क्यों लाचार और अपंग है शासन और प्रशासन ? क्या बस सारे नियम और कानून वेचारी जनता पर ही थोपने के लिए बने हैं ?

क्या कैलाश हास्पिटल के द्वारा किया गया ईलाज और अपनाई गयी प्रक्रिया एवं बिल व उन्हीं के दवाघर  उचित है ?

इन चिकित्सा माफियाओं पर क्यों मौन है प्रजातंत्र के चारों स्तम्भ और उनके ठेकेदार?

ये नौटंकी नहीं तो और क्या ?
गोरतलव है कि इन दोनों अस्पतालों का स्टाफ उन्हीं कपडों व ड्रेस में बिना मास्क और पीपीई किट के बार्ड के अन्दर घूमते और काम करते भी खुद अपनी आँखों से देखे, वही नर्सिंग व सहायक स्टाफ एवं डाक्टर्स एक साथ विना किसी परहेज और सुरक्षा के एकसाथ कोविड, आईसीयू बार्ड में मौजमस्ती के साथ खा-पी रहे! उन्हें तो कोई कोरोना संक्रमण नहीं हो रहा हाँ जब तीमारदारों या परिजनों के मिलने का समय तो उन पर सारे नियम और कानून व नौटंकी भरा मंजर कि कोई परिजन तभी आईसीयू में या बेड पर अपने मरीज से मिल सकता है पहले पीपीई किट पहन कर आओ और फिर वह किट वहीं उन्हीं की गैलरी में उतारकर वापस जाओ!
मार्क हास्पिटल में तो आईसीयू भी उपलब्ध नहीं और चार्जेज बडे़ अस्पतालों के आईसीयू से भी कई गुने सात हजार प्रतिदिन वह भी केवल आक्सीजन युक्त बेड वाले केविन के, ना कि आईसीयू तथा डाक्टर व स्टाफ के बिजटिंग भारी भरकम हजारों हजारों रुपये के चार्जेज। यही नहीं इन्हीं के अस्पतालों में स्थित दवा काउण्टर जिसे फार्मेसी कहा जाता है का तीस तीस और चालीस हजार का ढेरों दवाईयों का बिल जबकि कोरोना की दवाई नहीं, तो फिर ये लूटखसोट क्यों और मूकदर्शक बना स्वास्थय विभाग व औषधि विभाग किस लिए? सबसे मजेदार बात यह कि कोविड के लिए अनाधिकृत गैरकानूनी अस्पताल राजधानी में कैसे चल रहे हैं? और उन पर कार्यवाही व शिकंजा कसने में सरकार लाचार क्यों ? क्या इसी लूट खसोट के लिए इन्हें लांखों रुपये का भुगतान लेने की छूट दी गई ताकि मजबूर जनता चुपचाप लुटती रहे!

अब सुनिए उस सुपर स्पेशिलिटी की श्रेणी वाले कैलाश हास्पिटल की दास्तान जहाँ यरीज भर्ती होने से पहले ही गेट पर मनमर्जी के पेपर मरीज के परिजनों से हस्ताक्षर करा लिए जाते हैं और पहले उपचार की बजाए उसके एडवांस पेमेंट की फाईल में समय खराब किया जाता है फिर अगले दिन प्रातः अपनी ही फार्मेसी (दुकान) से पाँच हजार रुपये का फुल आक्सीजन मास्क मरीज के परिजन से खरीदवा मँगाया जाता (जबकि मास्क तो पहले से ही लगा हुआ, बिना उसके आक्सीजन कैसे दी जा रही थी) यही नहीं जो पीपीई किट हास्पिटल के बाहर केमिस्ट ढाई सौ की बेच रहा वही पीपीई किट अस्पताल के अंदर आठ सौ रुपये की बेची जा रही और जबरन मँगवाई जा रही, क्यों? जबकि यह अस्पताल किसी और का नहीं बल्कि भाजपा साँसद एवं पूर्व मंत्री डा.महेश शर्मा का है जिन्होंने भी जनता सेवा की शपथ खाई हुई है! प्रदेश सरकार पर भी इनका खासा रुआब चलता है तभी तो सबके सब नतमस्तक हैं इसके आगे !

पहले तो दोनों अस्पतालों द्वारा बिल देने में आनाकानी क्योंकि जो दवाईयाँ उपयोग में आयीं ही नहीं उनका भुगतान क्यों लिया गया? डाक्टर्स व स्टाफ के बिजिटिंग चार्जेज की बसूली क्यों ? क्या मरीज अस्पताल की शरण में पिकनिक मनाने गया था या इलाज कराने?
क्या अस्पतालों का यह रवैया कानूनी कार्यवाही का बिषय नहीं ?
क्या इन अस्पतालों की नेगलीजेंशी के कारण मरीज की हुई दर्दनाक मौत की जिम्मेदारी तय कर कोई प्रभावी तत्काल कार्यवाही होगी? और ईलाज के नाम पर भारीभरकम रकम की लूटखसोट के खेल में किये गये एक मरीज की जान से खिलवाड़ की भरपाई सम्भव है? उस परिवार को वापस दिला सकती है वह खोया हुआ सदस्य जिसकी जान इन्होंने ली?

यदि नहीं….
… तो अब बद करो ये तमाशा !

धृतराष्ट्र है सरकार, नेता व अफसरशाही!

प्राईवेट कसाईखाने वनाम मँहगे अस्पताल बंद करो!

इन असल गिद्धों की पहचान में देरी क्यों ?

– इन प्राईवेट अस्पतालों के अधिग्रहण में देरी क्यों ?

– महामारी एक तो ईलाज अलग – अलग क्यों ?

– कब बंद होगा ये फर्जी आँकडो़ का खेल ?

– सरकारी अस्पतालों से 90% संक्रमित मरीज की घंर वापसी, तो मँहगे प्राईवेट अस्पतालों से 90% डेडबाडी ही क्यों ?

– आपातकालीन चिकित्सीय संशाधनों पर कालाबाजारी क्यों ?

– अफसरों और सरकारी कर्मचारियों की भीड़, फिर ये नाकामी कैसी ?

– राष्ट्रीय आपदा में पक्ष और विपक्ष अलग-अलग क्यों ?

– क्या कोरोना संक्रमण नाम, जात, अमीर, गरीब या फिर सत्ताधारी व विपक्षी या फिर छोटे बडे़ का भेदभाव कर रहा है !

– कोरोना से आहत अथवा मृतकों के परिजनों को आर्थिक सहायता में समानता क्यों नहीं ?

– एच एल डब्ल्यू और एफ एल डब्ल्यू को ही आपदा सहायता राशि की श्रेणी में क्यों ?

– जब कोरोना का ईलाज और दवाई नहीं तो फिर हजारों और लाखों की दवाई के बिल क्यों ?

– इन कसाईखानों (अस्पतालों) की दवादुकानों पर चार गुनी कीमत पर लूटखसोट मचाता धंधा , क्या कालाबाजारी नहीं ?

– विना आवश्यकता जबरन आईसीयू और वेंटीलेटर के नाम पर की जा रही लूट कब होगी बंद ?

– इन चिकित्सा माफियाओं के आगे शासन प्रशासन और सरकार नतमस्तक व वौनी क्यों ?

– संक्रमित मरीज को आक्सीजन और बेड न दे सकने वाली सरकार, कैसी सरकार ?

– आँकडों से परे शमशान घाटों पर फिर लम्बी लम्बी लाईनों का मतलब ?

– चिकित्सा व उपचार एवं सर्जिकल को व्यापार बनाने बालों पर सर्जिकल स्ट्राईक कब ?

– अभी और कितनी लाशों को देखने की हवश है ?

जबाव दो सरकार !!

देखिए मार्क हास्पिटल का बिल + फार्मेसी के बिल्स …

अब देखिए कैलाश हास्पिटल के बिल्स …

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