उत्तराखंड : ये मजाक था या वाहवाही लूटने का नायाब तरीका!

  • ये त्रस्त लोगों से मजाक था या वाहवाही लूटने का नायाब तरीका!

  • आखिर साबित हुआ TSR का तुगलकी फ़रमान!
  • ऐसे ही मेन्टेन होगा क्या सोशल डिस्टेंश?
  • …ये प्रदेश को कोरोना महामारी में झोंकने का ही एक कदम साबित होता!
  • जनता चले तो पिटाई और जेल!
    और आप भीड़ चलायें तो जन सेवा?
  • वाह, TSR वाह!
  • देश में लाक डाउन परन्तु उत्तराखंड में होता वाक डाउन!
  • 31मार्च को पूरे दिन 13 घंटे चलेगें वाहन बाला आदेश लेना पड़ा वापस

देहरादून। विगत 22 मार्च से जहाँ इस वैश्विक महामारी करोना (covid-19) को हराने के लिए देश की जनता से प्रधानमन्त्री मोदी निरंतर अपील कर कह रहे हैं कि 21 दिन घर की लक्ष्मण रेखा पार न करके करोना वायरस को हराना और विजयश्री हासिल करना है। वहीं उत्तराखंड के सीएम TSR ने बिना कुछ सोचे समझे ही भारत सरकार के covid-19 के नियमों की अनदेखी करते हुये लाकडाउन के विपरीत गत दिवस तुगलकी फ़रमान के रुप में एक और घोषणा कर दी थी कि आगामी 31 मार्च को सभी 13 जिलों में 13 घंटे तक लोग अपने घरों और गांवों को आ-जा सकेंगे।

यही नहीं प्रदेश सरकार की ओर से उत्तराखंड परिवहन की बसें लोगो को इधर से उधर ले जायेंगी और उस दिन निजी वाहन भी निर्धारित समय प्रातः 7बजे से शाम 8 बंजे तक चलाने की छूट भी दी गई थी।

ये बात दीगर है कि सीएम TSR पहाड़ के लोगों के लिए चिंतित हैं, वहीं क्या यह पहलू गम्भीर नहीं है कि कहीं इन लोगों के माध्यम से ही करोना वायरस से अछूते जनपद और गाँव क्या बचे रहते और वायरस प्रूफ रहते? क्या यह कदम लाकडाउन को खुद प्रदेश सरकार द्वारा तोड़े जाने का कदम नहीं था? बल्कि उचित होता कि इसके विपरीत सरकार शैल्टर होम बनाती और जो जहाँ हैं वहीं उन्हें सुरक्षित करती तथा इन लोगों के लिए गम्भीरता के साथ आवश्यक व्यवस्थाएँ करती!

TSR की इस नायाब घोषणा से जहाँ फंसे हुये लोगो में खुशी की लहर दौड़ी थी, वहीं उन्हें तब ऐसा भी महसूस हुआ था कि ये घोषणा भी चुनावी और हसीन सपने वाली घोषणा ही थी तभी तो नियुक्त अधिकारियों व हैल्प लाइन के फोन व मोबाइल नम्बर ‘नो रिश्पांस’ या ‘स्वीच आफ’ रहे और परेशान लोगों को एहसास हुआ कि मजाक उनसे कोई और नहीं बल्कि TSR के ही लाडले कुछ आईएएस और आईपीएस आला अफसर कर रहें हैं।

वैसे ये कोई नयी बात नहीं है कि TSR शासन के अधिकांश तथाकथित जिम्मेदार अधिकारी, सचिव व नोडल अफसर और आपदा रिलीफ सेन्टर के फोन और मोबाइल फोन अधिकतर इन आरामतलब अधिकारियों की मर्जी पर हैं! ये फोन नम्बर हाथी दाँत की तरह दिखाने के लिए ही हैं, जो कभी रिश्पांस ही नहीं देते।
भला सीएम साहब को फुरसत ही कहाँ जो आपदा की इस घड़ी में कुछ कड़े निर्देश जारी करें और सख्ती से पालन करायें कि फोन न उठाने की गुस्ताखी क्षम्य नहीं होगी? यहाँ अगर इस मामले में कोई काबिलें तारीफ़ हैं तो वह हैं प्रदेश के मुख्य सचिव आईएएस उत्पल कुमार सिंह जो उस समय अगर व्यस्त हैं तो बाद में काल बैक तो करते हैं!

शुक्र है भारत सरकार के ग्रह मंत्रालय का जिसने सीएम TSR के तुगलकी फ़रमान को रद्द करा लाक डाउन की दिशा में सराहनीय कदम उठाया! इसी तरह क्या पूरे उत्तराखंड में बजाए दो घंटे और तीन घंटे के छ-छ घंटे की ढील बाले आदेश को रद्द करा सोशल डिसटेंश का अनुपालन सुनिश्चित कराया जायेगा और लाकडाउन को भलीभाँति लागू कराया जायेगा?

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