डी एम हो तो ऐसा – जिसे शासन की नहीं है जरूरत!

पोलखोल-तहलका breaking…
वाह रे वाह, गज़ब….!!
डी एम हो तो ऐसा – जिसे शासन की नहीं है जरूरत!
अतिरिक्त अपर तहसीलदार का नया पद सृजित कर चहेते नायब की कर दी नियुक्ति!
शहर से बाहर की दुर्गम क्षेत्र की जनता की कोई सुध नही!
दो और ढाई साल से जिले की तीन तीन तहसीलें पड़ी हैं खाली!
जब डी एम का हो हाथ तो आयुक्त के आदेशों की क्या औकात!
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देहरादून। TSR के राज्य में जो ना हो जाये वह थोड़ा ही है क्योंकि आखिर वे तो त्रिवेन्द्र ही हैं ना! तो फिर चाहे उनके राज्य में भृष्टाचारी और घोटालेबाज़ अधिकारी हों या फिर एसी रूम को ही जिला मान लेने बाले साहब डीएम साहब हों! ऐसे ही अनूठे कार्य करने बाले डीएम का एक ऐसा कारनामा प्रकाश में आया है जिससे साफ है कि उत्तराखंड में सब अपनी अपनी ढपली, अपना अपना राग अलापने को स्वतंत्र हैं। ना कोई नियम ना कोई कानून जो डीएम साहब कर दें वही कानून!
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार देहरादून के डीएम के द्वारा एक ऐसा आदेश 23 जनवरी को पत्रांक संख्या 3757 (पत्र की प्रति संलग्न)

के माध्यम से जारी हुआ है जिसमें एक चहेते नायब तहसीलदार को देहरादून में ही एडजस्ट करने के लिए एक ऐसा अनूठा नया पद क्रिएट कर दिया गया जिससे साफ हो गया है उत्तराखंड में कानून का पालन कराने बाले ही निरंकुश हो गए हैं! ज्ञात हो कि उक्त नायब तहसीलदार की तैनाती विगत करीब छः माह पूर्व आयुक्त गढ़वाल द्वारा पौढ़ी की जा चुकी है परन्तु उक्त अफलातून व चर्चित नायब तहसीलदार दून से बाहर जाना ही नही चाहता है। यही नहीं मलाईदार इक्षानुसार पोस्टिंग हासिल करने में भी माहिर रहा है जबकि उससे सीनियर नायब तहसीलदारों को नज़रंदाज़ भी किया जाता रहा है?
उल्लेखनीय है कि उक्त आदेश में नायब तहसीलदार सीलिंग दयाराम की देहरादून में ही पोस्टिंग से नवाजे जाने के लिए प्रशासनिक कार्यों की अधिकता और लोकसभा चुनाव के जहां आधार बनाकर अतिरिक्त अपर तहसीलदार के रूप में नियुक्ति की गई है वहीं माननीय डीएम साहब को जनपद की दुर्गम क्षेत्र की चकराता, कालसी और त्यूनी तहसीलें नही दिखयी पड़ रही हैं जो विगत दो-दो सालों से खाली पड़ी हैं और जनता परेशान भटक रही है तथा लोकसभा के चुनाव तो वहां भी होने ही हैं और प्रसाशनिक कार्य वहाँ भी रुके पढ़ें हैं व जनता भटक रही है?
मजे की बात तो यह भी है कि जिस पद को बिना शासन की मंजूरी के सृजित किया गया है वैसा कोई पद स्ट्रक्चर में है ही नहीं तो ऐसे में भला अतिरिक्त अपर तहसीलदार के पद की क्या इमरजेंसी आ गयी थी।
विषेषज्ञों की अगर माने तों डीएम को ऐसा कोई अधिकार प्राप्त नही कि नया पद सृजित कर दे। पहले तो डीएम को चाहिए था कि आयुक्त द्वारा किये गए आदेशों का पालन अपने आधीनस्थ से कराये क्योंकि आदेश को लटका कर रखना आयुक्त को ठेंगा दिखाने जैसा है!
चर्चा तो यह भी है कि उक्त नायब तहसीलदार को पहले भी कई बार नियम विरुद्ध अनुचित लाभ पोस्टिंग व प्रोन्नति में पहुंचाया जा चुका है? यही नही उक्त महाशय जब तब स्वयं आला अफसर बनकर अनेकों ऐसे कार्यों को अंजाम दे चुके हैं जिनका उन्हें अधिकार ही नहीं था तथा प्रशासन को इनकी करनी से खासी फजीहत भी झेलनी पड़ चुकी है।
देखना गौरतलब होगा कि TSR शासन इस प्रकरण पर कोई ठोस कदम उठाता है या फिर यूँ ही……!

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