बिना स्टाफ, सामान और अस्पताल के चल रहा आयुर्वेद विश्वविद्यालय

देहरादून : किसी भी विश्वविद्यालय का यह दायित्व बनता है कि संबद्ध कॉलेजों में नियमों की अनदेखी न होने दी जाए। लेकिन, आयुर्वेद विश्वविद्यालय ने खुद ही नियम-कायदे ताक पर रख दिए हैं। किसी भी मेडिकल कॉलेज के लिए अस्पताल एक प्रमुख कड़ी है, लेकिन विवि के अपने ही परिसर, हर्रावाला कैंपस में अस्पताल मरणासन्न स्थिति में है। यहां न स्टाफ है और न ही सामान। इससे प्रयोगात्मक कक्षाओं की स्थिति का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अब यदि विवि कैंपस का ये हाल है, तो अनुमान लगाइए कि निजी कॉलेजों में हालात क्या होंगे।

दरअसल, विवि का अस्पताल अब तक जुगाड़ पर चल रहा था। उधार के स्टाफ और सामान से यह अस्पताल संचालित किया जा रहा था। विवि ने मानकों की खानापूर्ति और मान्यता प्राप्त करने के लिए एक निजी कंपनी के स्टाफ को गैर शैक्षणिक स्टाफ के रूप में दिखा दिया। यह कंपनी विवि परिसर में धनवंतरी वैधशाला का संचालन कर रही थी। लेकिन, कंपनी के बाहर होते ही स्टाफ की संख्या शून्य हो गई।

इनमें वार्ड ब्वॉय, ओटी नर्स, नर्सिंग स्टाफ, लैब टेक्नीशियन, लैब एटेंडेंट, एक्स-रे टेक्नीशियन, पंचकर्म सहायक आदि शामिल थे। दिखावे के लिए अस्पताल में सामान जरूर था, पर अब वह भी नहीं रहा। हुआ यह कि वर्ष 2016 में हर्रावाला परिसर की प्रथम वर्ष की मान्यता होनी थी। सीसीआइएम टीम के निरीक्षक के वक्त तत्कालीन रजिस्ट्रार ने मौखिक आदेश पर एक फर्म से सामान की आपूर्ति ले ली। फर्म ने 65 लाख रुपये के सामान की आपूर्ति की।

लेकिन, बात भुगतान पर आई तो विवि ने पल्ला झाड़ लिया। फर्म मालिक ने कोर्ट में सामान वापसी की दरख्वास्त दी, जिस पर कोर्ट ने पुलिस को इस बावत आदेश जारी किए। इस सामान में ओटी, पैथोलॉजी लैब, गायनी, बाल रोग विभाग सहित अन्य विभागों के उपकरण शामिल हैं। इस स्थिति में अस्पताल अब संकटकाल से गुजर रहा है। यहां न ओपीडी हो रही है और न आइपीडी। विवि के कुलसचिव डॉ. राजेश कुमार का कहना है कि सामान वापसी को लेकर कोर्ट का आदेश था। जिसका अनुपालन करना जरूरी था। जहां तक स्टाफ का प्रश्न है, इसकी भी व्यवस्था की जा रही है।

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