भवाली। “भालुगाड झरना” कुमाऊं के कुछ खूबसूरत नजारो में से एक है। मुक्तेश्वर जाने वाले पर्यटक एक बार यहाँ जाने की ख्वाहिश जरूर रखते है। कसियालेख से धारी जाने वाले रास्ते मे लगभग 6 km. की दूरी पर गजार, बुरांशी ओर चौखुटा वन पंचायतो के भीतर स्तिथ इस झरने तक पहुंचने के लिए लगभग 2 km. पैदल भी चलना पड़ता है परन्तु बाज और बुरांस से घिरे इस घने जंगल से गुजरना और साथ मे बहती नदी ट्रैक को बेहद आकर्षक बना देते है। सैकड़ों सैलानी देश और विदेश से भालू गाड़ जलप्रपात में पर्यटन के लिए आते हैं। परंतु तस्वीर का एक दूसरा रुख भी है, अनियमित पर्यटन ने जहाँ एक और पूरे रास्ते में गन्दगी के पहाड़ खड़े करने शुरू किये वही,साफ और स्वछ पानी में भी गन्दगी घुलने लगी।
चार वर्ष पूर्व हरेंद्र सिंह जी के नेतृत्व और गंगा जोशी के निर्देशन में इन वन पंचायतों की महिलाओं ने भालू गाड़ की इसी गन्दगी के निकट बेठकर इस पर चर्चा आरम्भ की। इस कार्य में उन्हें गांव के कुछ पुरुषो का भी साथ मिला। बैठक में भालू गाड़ के पर्यावरण को बचाने के साथ साथ युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बनाने पर भी चर्चा हुई।
भालू गाड़ की तीनों वन पंचायतों ने मिलकर 15 सदस्यीय भलुगाड जल प्रपात समिति का गठन किया।

समिति ने पिछले 4 वर्षों में भालुगाड के निकट कई गतिविधियों की श्रंखला आरम्भ की, जिनके अंतर्गत भालू गाड़ की सफाई कूड़ेदानों के निर्माण,वृक्षारोपण,गाइडों की नियुक्ति, पर्यावरण जागरुकता अभियान आदि संपन्न किये गए।
इस सब कार्य के लिए संसाधन जुटाने हेतु पर्यटकों तथा गाइडों से शुल्क लेना आरम्भ किया गया।
इस शुल्क का नियमित रूप से प्रतिवर्ष ऑडिट भी कराया जाता है, तथा इस शुल्क से प्राप्त धनराशि को भलुगाड की व्यवस्था के साथ साथ तीनो वन पंचायतों की व्यवस्था हेतु भी बांटा जाता है। पिछले वित्तीय वर्ष में समिति की कुल आय लगभग 10 लाख रुपया रही।
संपूर्ण क्रियाकलापों का सोशल ऑडिट भी किया जाता है। जिसमे सचिव के द्वारा संपूर्ण आय -व्यय के विवरण के साथ आगामी वर्ष के लिए योजना भी प्रस्तुत की जाती है। इस कार्यक्रम में स्थानीय जन प्रतिनिधियों सहित विभागों के अधिकारियों द्वारा भी भागीदारी की जाती हे।
इस वर्ष आयोजित हुए कार्यक्रम में पूर्व विधायक दान सिंह , जिला पंचायत सदस्य गोपाल सिंह,भवान सिंह, मोहन कार्की, गंगा सिंह,देवां सिंह, जुगल मठपाल प्रभागीय वन अधिकारी दिनकर तिवारी,वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के सयोंजक तरुण जोशी ,हेमा ,गंगा,पार्वती सहित बड़ी संख्या में लोगो ने भागीदारी की।
उत्तराखंड में वन पंचायतों को आपस में जोड़ते हुए पर्यावरण के साथ साथ , रोजगार से जोड़ने की यह पहल अपने आप में शायद इकलौती पहल है। संसाधनों से भरपूर उत्तराखंड की अन्य वन पंचायतों के लिए यह पहल एक प्रेरणा का कार्य कर सकती है पर उसके लिए हरेंद्र सिंह जैसे कर्मठ और गंगा जैसे मार्गदर्शकों की भी भरपूर जरुरत होगी।