

वाह रे, वाह! ऊर्जा विभाग वाह!!
जीरो टॉलरेन्स, महिमा तेरी अपरम्पार!
20-25 साल तक का पीपीए यूपीसीएल से साइन कराने की चल रही है कवायद!
एल एण्ड टी को अरबों रुपए का लाभ पहुंचाने के लिए दोगुनी दरों पर महंगी बिजली ऽरीदने की बिछ गई विसात!
सिंगौली भटवाड़ी 99 मेगावाट यूआईटीपी स्कीम में घोटाले कर जुटाया जाएगा 2022 का चुनाव फंड?
पिटकुल व यूपीसीएल के अधिकारी रेवड़ियों के फेर में शासन के इशारों पर बुन रहे हैं तानाबाना!
लगभग 165 करोड़ की लागत से है 80 किलोमीटर की है पिटकुल की लाइन
जून 2020 से तैयार लाइन के क्लेम की भरपाई का जिम्मेदार कौन?
20-25 साल के पीपीए से भारी भरकम बोझ दंश के रूप में क्योँ झेलेंगे उत्तराखण्ड के उपभोक्ता?
जल विद्युत का खर्चा भी झेलेगा यूपीसीएल और फिर बसूलेगा उपभोत्तफ़ाओं से!
400 केवी श्रीनगर पावर हाउस से एलएनटी को बेचनी है प्रदेश से बाहर बिजली!
जब खुले बाजार में आवश्यकता अनुसार आधी कीमत पर मिल सकती है बिजली तो महंगा करार क्यों?
पहले ही पूर्व सरकार की करनी से महंगी गैसबेस्ड बिजली के करार को भुगत रहा है प्रदेश व उपभोत्तफ़ा।
पिछले सैकड़ों करोड़ के घोटाले जस के तस, नए हजारों करोड़ के घोटाले की दस्तक!
क्या नियामक आयोग व सीआरसी एवं सीईसी करेगी जनहित में हस्तक्षेप? क्या उच्चन्यायालय लेगा स्वसंज्ञान?
तीसरी आँख का तहलका करता है सदैव जनहित की बात !
(सुनील गुप्ता की खास रिपोर्ट)
20-25 साल तक का पीपीए यूपीसीएल से साइन कराने की चल रही है कवायद!
एल एण्ड टी को अरबों रुपए का लाभ पहुंचाने के लिए दोगुनी दरों पर महंगी बिजली ऽरीदने की बिछ गई विसात!
सिंगौली भटवाड़ी 99 मेगावाट यूआईटीपी स्कीम में घोटाले कर जुटाया जाएगा 2022 का चुनाव फंड?
पिटकुल व यूपीसीएल के अधिकारी रेवड़ियों के फेर में शासन के इशारों पर बुन रहे हैं तानाबाना!
लगभग 165 करोड़ की लागत से है 80 किलोमीटर की है पिटकुल की लाइन
जून 2020 से तैयार लाइन के क्लेम की भरपाई का जिम्मेदार कौन?
20-25 साल के पीपीए से भारी भरकम बोझ दंश के रूप में क्योँ झेलेंगे उत्तराखण्ड के उपभोक्ता?
जल विद्युत का खर्चा भी झेलेगा यूपीसीएल और फिर बसूलेगा उपभोत्तफ़ाओं से!
400 केवी श्रीनगर पावर हाउस से एलएनटी को बेचनी है प्रदेश से बाहर बिजली!
जब खुले बाजार में आवश्यकता अनुसार आधी कीमत पर मिल सकती है बिजली तो महंगा करार क्यों?
पहले ही पूर्व सरकार की करनी से महंगी गैसबेस्ड बिजली के करार को भुगत रहा है प्रदेश व उपभोत्तफ़ा।
पिछले सैकड़ों करोड़ के घोटाले जस के तस, नए हजारों करोड़ के घोटाले की दस्तक!
क्या नियामक आयोग व सीआरसी एवं सीईसी करेगी जनहित में हस्तक्षेप? क्या उच्चन्यायालय लेगा स्वसंज्ञान?
तीसरी आँख का तहलका करता है सदैव जनहित की बात !
(सुनील गुप्ता की खास रिपोर्ट)
देहरादून। पिछले सभी चुनावों पर यदि हम नजर डालेे तो यही मानेगें और पायेगें कि चुनाव से पूर्व चुनावों की दस्तक से पहले सत्ताधारी पक्ष घोषणाओं, वादों उद्घाटनों और शिलान्यासों के साथ-साथ जनता को राहत पहुंचाना प्रारम्भ करने लगते है और कोई भी ऐसा कार्य नहीं करते जिसका असर उनके चुनाव पर पड़े और उनका असर उनके चुनाव पर पड़े और उनका राजनैतिक दल प्रभावित हो तथा जनमानस और मतदाता के कोपभाजन का शिकार हो। उत्तराखंड की वर्तमान सरकार और उसकी पार्टी के नेताओं के रवैये और कार्यप्रणाली तथा उनकी इच्छाशक्ति व लालसा ठीक इसके विपरीत नजर आ रही है। भले ही उसका कारण पार्टी कमाना का अंध प्रेम और ढीठपन हो या फिर ऐसा मौका फिर कहां मिलेगा या नहीं! शायद सही सही है क्योंकि वर्तमान सरकार को न ही अपने आप पर भरोसा है और न ही अपने कार्यों और कार्यप्रणाली से मतदाताओं को फिर रिझा पाने की सफलता पर विश्वास है क्याेंकि इस प्रदेश में 2022 के चुनाव में राजस्थान की तर्ज पर ‘ज्ैत् तेरी खैर नहीं, मोदी से बैर नहीं’ की सत्तापक्ष के धाराशायी होने की ज्यादा सम्भावना दिखाई पड़ रही है बाकी तो समय ही बतायेगा! सत्ताधारी दल की सरकार और प्रदेश के मुखिया अब इसी की ‘जीररो टालरेंस’ की नीति को अब अपने पर लागू करते हुये ‘भाड़ में जाए जनता -अपना काम बनता’ वाले फार्मूले को अपनाने में तल्लीन दिखाई पड़ने लगी है। यह सरकार ‘राम-नाम की लूट को कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहती और चुनाव फंड भी एक ही बार में , ‘मियां की जूती और मियां की ही चांद’ की कहावत को चरितार्थ करते हुये एक ऐसा भयावह दंश इस ऊर्जा प्रदेश की जनता को आने वाले 2–25 वर्षो तक छोड़ने की फिराक में है। ऐसा ही अजब गजब का भ्रष्टाचार और महाघोटाले की दस्तक का प्रकाश में आया है। इस महाघोटाले को यदि नहीं रोका गया तो ऊर्जा प्रदेश की जनता ऊर्जा अर्थात बिजली की भारी दरों का बोझ भुगतेगी ंऔर ऊर्जा विभाग जो विगत चार वर्षों में बजाए घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों पर अंकुश लगाना तो दूर उसमें हो रहे अप्रत्याशित वृद्धि को राकने में भी नाकाम हो रही है। परिणामस्वरूप ऊर्जा विभाग के तीनों निगम और उरेडा के अधिकारी के घरों को भरने के साथ-साथ प्रदेश सरकार के नेताओं और शासन में बैठे आला अफसरों को बोरे भर-भरकर रकम भर-भर कर देते रहने में मशगूल है तथा उन्हीं नोटों के बोरे में से कुछ बोरे तथाकथित रूप से आला हाईकामन तक पहुंचाये जाते रहे है तभी तो डबल इंजन वाली सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेग रही है।
जिस ‘महाघोटाले की दस्तक’’ का उल्लेख हम यहां जनहित में कर रहे हैं वह भी इसी भ्रष्टाचार का पर्याय बने ऊर्जा विभाग का ही है। इस महाघोटाले को कोई यदि समय रहते नहीं रोका गया तो सैकड़ों करोड़ की रिश्वत व अग्रिम भेंट पूजा के बल पर एक नामी गिरामी अंर्तराष्ट्रीय स्तर की निजी कम्पनी को हजारों करोड़ का फायदा पहुंचाने का पट्टा रूपी पीपीए अगले 20-25 वर्षों तक आकट्य हस्ताक्षरों से विरासत में दे दिया जायेगा। बात यहां सैकड़ों करोड़ के रिश्वत और घूसखोरी की ही तक सीमित नीं रह जायेगी बल्कि इसका दूरगामी खामियाजा इस ऊर्जा प्रदेश के उपभोक्ता बिजली की मंहगी दरों के रूप में भुगतेगें? एक ओर रेपोरेट की तरह जहां बैंक के ब्याज की दरों में पिछले कुछ वर्षों में भारी गिरावट देखने को मिली है वहीं ऊर्जा के क्षेत्र में बिजली की पैदावर की अप्रत्याशित वृद्धि तथा सोलर एनर्जी से खुल बाजार में कम्पटीशन के चलते बिजली का बाजार मूल्य भी ओपन मार्केट में काफी निचले स्तर पर आता जा रहा है और बिजली बजाए महंगी होने के सस्ती दरों पर विद्युत उत्पादन करने वाले जनरेटर उपलब्ध करा रहे है। उसका यह भी कारण है कि बिजली खपत की अपेक्षा इसका उत्पादन अधिका मात्र में हो रहा है तथा बिजली को किसी भी दशा में आगे आने वाले समय के लिये किसी वेयर हाउस व स्टोर में स्टोर नहीं किया जा सकता है और न ही अभी तक कोई ऐसी तकनीक ईजात हुई है।
सूत्रें की अगर यहां माने तो देवभूमि उत्तराखंड को कुदरत से मिले तोहफे रूपी इन नदियों और बेसिन व ग्लेशियरों से मिलने वाली जल विद्युत (हाईडोपॉवर) तथा सोलर ऊर्जा परियोजनाओं के अपने पूर्णतया मूर्त रूप से आने तक इस प्रदेश को भारी मात्र में बिजली पैदावार के रूप में फसल मिलेगी। हालांकि यहां की सरकार व पिछली सरकारों के निकम्मेपन व शासन में बैठे कुछ प्रमुख चील और कौवे तथा तीनों निगमों में भ्रष्टाचारी दानव के रूप में कार्यरत गिद्धों की निगाह और चोंच बगुला भगत की तरह ऊपर कुछ और अन्दर कुछ की नीति पर काम करने की जो प्रणाली अभी तक देखने को मिली है उसकी का परिणाम है कि राज्य बने हुये इस देवभूमि को 20-21 वर्ष पूरे हो गये किन्तु एक भी योजना धरातल पर पूर्ण रूप से सफल नजर नहीं आयी ओर 99 प्रतिशत जल विद्युत परियोजनायें पिछले बीस वर्षों में या तो जस की तस पड़ी हुई है या फिर उनकी लागत निर्धारित अवधि पर पूरी न होने के कारण चार से छः गुना बढ़ गयी है और सकल मूर्त लेने तक इनका क्या हाल होगा इसका अनुमान दिनोंदिन आती नई-नई आसान तकनीक के चलते ये कछुवा चाल वाली हजारों करोड़ की परियोजनाएं सफेद हाथी ही साबित होने की सम्भावना को भी नकारा नहीं जा सकता।
ज्ञात हो कि इस ऊर्जा विभाग जिसकों तथाकथित रूप से तेजतर्रार माने जाने वाली सचिव विगत करीब चार वर्षों से सम्भाले हुये है, की कथनी और करनी अभी तक परस्पर बिल्कुल विपरीत साबित हुई है। ऊंची दुकान फीका पकवान और नाम बड़े दर्शन छोटे की कहावत की तरह खुद के मुंह मियां मिठ्ठू बनने वाला ज्ैत् शासन दोनों हाथों से मखमल के रेड कारपेट पर चलते हुये पौ-बारह के साथ कागजी दिखावटी आंकड़ो पर वाह-वाही बटोर रहा है। और डबल इंजन वाली सरकार के दम पर इसके मुखिया रोम जल रहा है न्यूरो बंशी बजाने में मस्त है तथा जनता अपने मतदान और बहकाये व बहलाएं में आने को लेकर पछता रही है।
ज्ञात हो कि अलकनंदा बेसिन पर विद्यमान सिंगोली भटवाड़ी 99 मेगावाट की यूआईटीपी इस योजना में पिटकुल की लगभग 165 करोड़ की 80 किलोमीटर ट्रान्समिशन लाईन से हाइड्रो पॉवर जनरेटर एल एंड टी की बिजली को वर्तमान खुले बाजार में मिलनी वाली दरों से दोगुनी कीमत पर खरीद पर अगले 20-25 वर्षों तक का पीपीए (पॉवर परचेज एग्रीमेंट) करके सेकड़ों करोड़ की भारी भरकम रकम का सुविधा शुल्क व कृपा निदान शुल्क के रूप में बटोर कर यूपीसीएल में कराये जाने का ताना-बाना विगत लगभग पांच छः माह से बुनने की कवायद चल रही है तथार बारगेिंग और गेटिंग शेटिंग के कुछ खासमखास एक्सपर्ट जो इन दोनों निगमों में विद्यमान है अमली जामा पहनाने की फिराक में है ताकि इनमें से एक यूपीसीएल और दूसरा घोटालों का एक्सपर्ट महारथी भी पिटकुल की कुसी पर विराजमान हो सके या फिर इनमें भी अधिक शानों शौकत वाली नियामक आयोग के चेयरमैन की कुर्सी हथियाई जा सके।
उल्लेखनीय है कि यदि उक्त हाइड्रो पॉवर जनरेटर व यूपीसीएल का यह दोगुनी दर पर बिजली खरीद का अनुबंध हो जाता है तो पिछली HR सरकार की गैस बेस्ड एनर्जी अनुबंध के दंश की तरह आगामी 20-25 वर्षों तक महादंश के रूप में महंगी बिजली की दरों के रूप में इस प्रदेश के उपभोक्ता भुगतेगें।
यह भी ज्ञात हो कि अलकनंदा बेसिन पर इस हाइड्रो पॉवर जनरेटर एल एंड टी को यहां से उतपन्न ऊर्जा पॉवर को 400 ज्ञट श्रीनगर पॉवर हाऊस के माध्यम से प्रदेश से बाहर बेचनी थी और इसका लाभ भी इस प्रदेश को ही रॉयल्टी (लाभांश) के रूप में मिलना था तथा यही नहीं उक्त जनरेटर कम्पनी को गत वर्ष जून में
जिस ‘महाघोटाले की दस्तक’’ का उल्लेख हम यहां जनहित में कर रहे हैं वह भी इसी भ्रष्टाचार का पर्याय बने ऊर्जा विभाग का ही है। इस महाघोटाले को कोई यदि समय रहते नहीं रोका गया तो सैकड़ों करोड़ की रिश्वत व अग्रिम भेंट पूजा के बल पर एक नामी गिरामी अंर्तराष्ट्रीय स्तर की निजी कम्पनी को हजारों करोड़ का फायदा पहुंचाने का पट्टा रूपी पीपीए अगले 20-25 वर्षों तक आकट्य हस्ताक्षरों से विरासत में दे दिया जायेगा। बात यहां सैकड़ों करोड़ के रिश्वत और घूसखोरी की ही तक सीमित नीं रह जायेगी बल्कि इसका दूरगामी खामियाजा इस ऊर्जा प्रदेश के उपभोक्ता बिजली की मंहगी दरों के रूप में भुगतेगें? एक ओर रेपोरेट की तरह जहां बैंक के ब्याज की दरों में पिछले कुछ वर्षों में भारी गिरावट देखने को मिली है वहीं ऊर्जा के क्षेत्र में बिजली की पैदावर की अप्रत्याशित वृद्धि तथा सोलर एनर्जी से खुल बाजार में कम्पटीशन के चलते बिजली का बाजार मूल्य भी ओपन मार्केट में काफी निचले स्तर पर आता जा रहा है और बिजली बजाए महंगी होने के सस्ती दरों पर विद्युत उत्पादन करने वाले जनरेटर उपलब्ध करा रहे है। उसका यह भी कारण है कि बिजली खपत की अपेक्षा इसका उत्पादन अधिका मात्र में हो रहा है तथा बिजली को किसी भी दशा में आगे आने वाले समय के लिये किसी वेयर हाउस व स्टोर में स्टोर नहीं किया जा सकता है और न ही अभी तक कोई ऐसी तकनीक ईजात हुई है।
सूत्रें की अगर यहां माने तो देवभूमि उत्तराखंड को कुदरत से मिले तोहफे रूपी इन नदियों और बेसिन व ग्लेशियरों से मिलने वाली जल विद्युत (हाईडोपॉवर) तथा सोलर ऊर्जा परियोजनाओं के अपने पूर्णतया मूर्त रूप से आने तक इस प्रदेश को भारी मात्र में बिजली पैदावार के रूप में फसल मिलेगी। हालांकि यहां की सरकार व पिछली सरकारों के निकम्मेपन व शासन में बैठे कुछ प्रमुख चील और कौवे तथा तीनों निगमों में भ्रष्टाचारी दानव के रूप में कार्यरत गिद्धों की निगाह और चोंच बगुला भगत की तरह ऊपर कुछ और अन्दर कुछ की नीति पर काम करने की जो प्रणाली अभी तक देखने को मिली है उसकी का परिणाम है कि राज्य बने हुये इस देवभूमि को 20-21 वर्ष पूरे हो गये किन्तु एक भी योजना धरातल पर पूर्ण रूप से सफल नजर नहीं आयी ओर 99 प्रतिशत जल विद्युत परियोजनायें पिछले बीस वर्षों में या तो जस की तस पड़ी हुई है या फिर उनकी लागत निर्धारित अवधि पर पूरी न होने के कारण चार से छः गुना बढ़ गयी है और सकल मूर्त लेने तक इनका क्या हाल होगा इसका अनुमान दिनोंदिन आती नई-नई आसान तकनीक के चलते ये कछुवा चाल वाली हजारों करोड़ की परियोजनाएं सफेद हाथी ही साबित होने की सम्भावना को भी नकारा नहीं जा सकता।
ज्ञात हो कि इस ऊर्जा विभाग जिसकों तथाकथित रूप से तेजतर्रार माने जाने वाली सचिव विगत करीब चार वर्षों से सम्भाले हुये है, की कथनी और करनी अभी तक परस्पर बिल्कुल विपरीत साबित हुई है। ऊंची दुकान फीका पकवान और नाम बड़े दर्शन छोटे की कहावत की तरह खुद के मुंह मियां मिठ्ठू बनने वाला ज्ैत् शासन दोनों हाथों से मखमल के रेड कारपेट पर चलते हुये पौ-बारह के साथ कागजी दिखावटी आंकड़ो पर वाह-वाही बटोर रहा है। और डबल इंजन वाली सरकार के दम पर इसके मुखिया रोम जल रहा है न्यूरो बंशी बजाने में मस्त है तथा जनता अपने मतदान और बहकाये व बहलाएं में आने को लेकर पछता रही है।
ज्ञात हो कि अलकनंदा बेसिन पर विद्यमान सिंगोली भटवाड़ी 99 मेगावाट की यूआईटीपी इस योजना में पिटकुल की लगभग 165 करोड़ की 80 किलोमीटर ट्रान्समिशन लाईन से हाइड्रो पॉवर जनरेटर एल एंड टी की बिजली को वर्तमान खुले बाजार में मिलनी वाली दरों से दोगुनी कीमत पर खरीद पर अगले 20-25 वर्षों तक का पीपीए (पॉवर परचेज एग्रीमेंट) करके सेकड़ों करोड़ की भारी भरकम रकम का सुविधा शुल्क व कृपा निदान शुल्क के रूप में बटोर कर यूपीसीएल में कराये जाने का ताना-बाना विगत लगभग पांच छः माह से बुनने की कवायद चल रही है तथार बारगेिंग और गेटिंग शेटिंग के कुछ खासमखास एक्सपर्ट जो इन दोनों निगमों में विद्यमान है अमली जामा पहनाने की फिराक में है ताकि इनमें से एक यूपीसीएल और दूसरा घोटालों का एक्सपर्ट महारथी भी पिटकुल की कुसी पर विराजमान हो सके या फिर इनमें भी अधिक शानों शौकत वाली नियामक आयोग के चेयरमैन की कुर्सी हथियाई जा सके।
उल्लेखनीय है कि यदि उक्त हाइड्रो पॉवर जनरेटर व यूपीसीएल का यह दोगुनी दर पर बिजली खरीद का अनुबंध हो जाता है तो पिछली HR सरकार की गैस बेस्ड एनर्जी अनुबंध के दंश की तरह आगामी 20-25 वर्षों तक महादंश के रूप में महंगी बिजली की दरों के रूप में इस प्रदेश के उपभोक्ता भुगतेगें।
यह भी ज्ञात हो कि अलकनंदा बेसिन पर इस हाइड्रो पॉवर जनरेटर एल एंड टी को यहां से उतपन्न ऊर्जा पॉवर को 400 ज्ञट श्रीनगर पॉवर हाऊस के माध्यम से प्रदेश से बाहर बेचनी थी और इसका लाभ भी इस प्रदेश को ही रॉयल्टी (लाभांश) के रूप में मिलना था तथा यही नहीं उक्त जनरेटर कम्पनी को गत वर्ष जून में
कमीशन्ड के समय से ही जब पिटकुल की लाईन तैयार हो चुकी थी तभी से बिजली ट्रांसमिट कर बाहर ले जानी थी परन्तु विगत सात माह से खाली पड़ी इस लाईन से हो रही क्षति की भरपाई का जहां महत्वपूर्ण प्रश्न है वहीं उससे भी महत्वपूण है कि इस निजी कम्पनी पॉवर जनरेटर के लाभ हानि को देखना चाहिए या फिर प्रदेश हित और जनहित को? यहां का TSRह शासन वह त्यागी महर्षि दधिचि का अनुसरण तो कर रहा है परनतु महर्षि दधिचि ने अपने राष्ट्र व जन सामान्य की रक्षा हेतु अपनी -अपनी अस्थियों के शस्त्र व कवच प्रदान करने की परोपकारी नीति अपनाई थी और ये सरकार व शासन है जो ठीक इसके विपरीत जनता जर्नादन की गाढ़ी कमाई को इस तरह से बट्टा लगा अपना घर भरने में जुटी है तथा आने वाले चुनाव के लिये भारी भरकम फंड जुटाने में लगी हुई है।
सूत्रें की अगर यहां यह भी माने तो हाई कामन और केन्द्र के कुछ मठाधीशों की कृा पात्र ये ब्यूरोक्रेट दम्पति सैकड़ों और हजारों करोड़ के भ्रष्टाचार और घोटालों के कारण भी टस से मस नहीं हो रहे है जबकि अनेकों ब्यूरोक्रेट आला अफसर जीरो टालरेंस की बेदी पर बलि चढ़ चुके हैं या फिर उन्हें तालमेल करने के लिये विवश होना पड़ा।
मजे की बात यह भी है कि आने वाले समय में इस प्रदेश में लम्बे समय से निर्माणाधीन परियोजनाएं जो 60-70 प्रतिशत ही अभी तक तैयार हुई है इनमें छज्च्ब् करीब 500 मेगावाट, मोरा 60 मेगावाट की मैचिंग लाईन की पैनल्टी भी खटाई में पड़ी हुई है। उत्तराखंड इन्टीग्रेटिड पारेषण योजना की उक्त सिंगोली भटवाड़ी योजना जो ब्म्त्ब् की नियमानुसार टैरिफ तय करता है। यहीं नहीं ऊर्जा विभाग और न्प्ज्च् के अनुसार एल एंड टी 99 मेगावाट भ्म्च् को मार्च 2020 तक पूर्ण रूप से तैयार हो जाना था रिवाईज्ड स्ज्। के अनुसार इसकी तिथि दिसम्बर 2018 में बढ़ाई भी जा चुकी है। यहां सबसे महत्वपूर्ण एक प्रश्न यह भी है। इस महंगी बिजली की खरीद में जो भी खर्चा ट्रांसमिशन आदि का भारी भरकम पड़ेगा वह भी इस प्रदेश के यूपीसीएल पर पडे़गा जिसकी वसूली महंगी बिजली दर व जन धन से होगी। एल एंड टी जो अपनी बिजली को म्गबींदहम में मात्र 3-3-50/- प्रति यूनिट की दर पर बेच रहा है और इस घाटे को बचाने के लिये तथा अरबों की रकम उत्तराखंड से कमाने व कमवाने के लिये यह पूरी कवायद शीघ्र ही परवान चढ़ने ही वाली है।
क्या उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग एवं उच्च न्यायालय एवं केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग व केन्द्रीय विद्युत निगम (CEC) इस महा घोटाले की दस्तक पर स्व संज्ञान लेते हुये देवभूमि की जनता को दशं से बचायेगा? या फिर यूं ही …!
मजे की बात यह भी है कि आने वाले समय में इस प्रदेश में लम्बे समय से निर्माणाधीन परियोजनाएं जो 60-70 प्रतिशत ही अभी तक तैयार हुई है इनमें छज्च्ब् करीब 500 मेगावाट, मोरा 60 मेगावाट की मैचिंग लाईन की पैनल्टी भी खटाई में पड़ी हुई है। उत्तराखंड इन्टीग्रेटिड पारेषण योजना की उक्त सिंगोली भटवाड़ी योजना जो ब्म्त्ब् की नियमानुसार टैरिफ तय करता है। यहीं नहीं ऊर्जा विभाग और न्प्ज्च् के अनुसार एल एंड टी 99 मेगावाट भ्म्च् को मार्च 2020 तक पूर्ण रूप से तैयार हो जाना था रिवाईज्ड स्ज्। के अनुसार इसकी तिथि दिसम्बर 2018 में बढ़ाई भी जा चुकी है। यहां सबसे महत्वपूर्ण एक प्रश्न यह भी है। इस महंगी बिजली की खरीद में जो भी खर्चा ट्रांसमिशन आदि का भारी भरकम पड़ेगा वह भी इस प्रदेश के यूपीसीएल पर पडे़गा जिसकी वसूली महंगी बिजली दर व जन धन से होगी। एल एंड टी जो अपनी बिजली को म्गबींदहम में मात्र 3-3-50/- प्रति यूनिट की दर पर बेच रहा है और इस घाटे को बचाने के लिये तथा अरबों की रकम उत्तराखंड से कमाने व कमवाने के लिये यह पूरी कवायद शीघ्र ही परवान चढ़ने ही वाली है।
क्या उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग एवं उच्च न्यायालय एवं केन्द्रीय विद्युत नियामक आयोग व केन्द्रीय विद्युत निगम (CEC) इस महा घोटाले की दस्तक पर स्व संज्ञान लेते हुये देवभूमि की जनता को दशं से बचायेगा? या फिर यूं ही …!